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________________ तेषीसमी संधि पर सिंह हो, जानेकी तैयारीपर लक्ष्मण उसी प्रकार कुपित हो ठा-"किसने धरणेन्द्र के फणामणि को तोड़ा, किसने इन्द्रके वनदण्डको अपने बाहुओंसे मोड़ा ? किसने अपनेको प्रलयानलमें डाल दिया ? किसने क्रुद्ध शनिको देखा, कौन रत्नाकरको शोषित कर (दिसो के रेड कलेपित किया है ? किसने महीमण्डलको अपने बाहुओंसे टाला है ? किसने त्रिलोकचक्रको संचालित किया है ? महायुद्ध में काल और कृतान्तको किसने जीता है ? रामके जीवित रहनेपर दूसरा राजा कौन ? अथवा बहुत कहने से क्या ? आज भरतको पकड़कर, रामको अपने हाथसे असामान्य राज्य दूंगा?" ||१-९॥ [८] तब, जिसके फड़कते हुए लाल-लाल नेत्र थे, जो कलिकृतान्त और कालकी तरह भीषण था, ऐसे दुर्निधार लक्ष्मणको दुर्वार महागजकी तरह उक्त बात कहते हुए सुनकर त्रिलोकसुन्दर राम कहते हैं--"क्या तुम्हारे विरुद्ध होनेपर कोई दुर्धर हो सकता है जिसके सिंहनादसे पहाड़ गिर पड़ता है, उस राजाके द्वारा भरतका क्या ? ग्रहण ? यदि सूर्यमें दीप्ति, चन्द्रमामें अमृत, समुद्र में जलसमूह, मोक्षमें सुख, जिनवरमें जीवदया, साँपमें विष और गजबर में लीला, धनदमें ऋद्धि , काममें सौभाग्य, हंसमें गति, विष्णुने लक्ष्मी और क्रुद्ध होने पर तुममें पौरुप है, तो इसमें आश्चर्यकी क्या बात ?" यह कहकर रामने लक्ष्मणका हाथ तत्काल पकड़ दिया। पिताके सत्यका नाश होनेपर राज्यसे क्या करना ? जबतक सोलह वर्ष हैं, हम दोनों घनवास में रहे ? ।।१-५|| [९] रामने जबतक ये शब्द कहे तबतक सूर्य अस्ताचल पर पहुँच गया। सन्ध्या हो गयी, वह इस प्रकार आरक्त दिखाई दी, मानो सिन्दूरसे विभूषित गजघटा हो। सूर्यके मांस और रक्तावलिसे चचित वह निशाचरीके समान आनन्दसे नाच
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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