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पउमचरित
'के धरणिन्द-फणा मणि तोदिउ । के सुर-कुलिस-दण्ड भुगू मोदिङ ॥॥ के पलयाणसें अप्पउ' होइन। के आरुटुउ सणि अपलोड 1411 के रयणाथरु सोसें चि सकिउ। के आइग्रहों नेउ कलकित ॥३॥ के महि-मण्डल बाहहिँ टालिड । के तइलोक-चाकु संचालिड ।।७।। के जिउ कालु कियन्तु महाहवे। को पहु अण्णु जिपम्तएँ राहवें ॥८॥
पत्ता अहवह किं पहुएण भाहु धरेप्पिन अज्ज । रामहो णीलावण्णु देमि सहर) रज्जु ।।९॥
[ ] तो फुरम्स-रत्तन्त-लोयणो। कलि कियन्त-कालो ध मीसणो ||| दुष्णिवार पुष्पार-धारणो । सुउ असन्तु जं एम लक्षणो ||२|| मणइ रामु तहलोफ्क-सुन्दरो। 'पइँ विरुखें किं को वि युद्धरो ।।३।। जसु गडन्ति गिरि सिंह पाएंणं । कवणु गहणु पो मरह राणं ।। कवणु चौजु जं दिवि दिवायरे। अमित चन्दें जल-णिबहु सायरे ||१| सोक्नु मोक्खें दय-धम्मु जिणवरे । विसु भुय वर लील गयवरे ।।३।। धणए रिति. खोहग्गु धम्महे। गइ मराले जय-लच्छि मामहे ॥७॥ पउस्सं च पइँ कुविएँ लक्षणे। मणेवि एम करें धरित तक्खणे ॥६॥
धत्ता 'रज्जे किजइ काइँ सायहाँ सच-विणालें । सोलह वरिलइ जाम वि वस? खण वासे' ।।९।।
[२] एह वोल्क जिम्माइय जाहि। दुक्कु माणु अस्थषणहाँ ताहिं ॥१॥ जाइ सम्म आरस पदीसिय। णं गम-घड सिन्दूर-बिसिय ॥२॥ सूर-मंस-हहिरालि चश्चिय । णिसियरि ब्व आणन्दु पणषिय ॥३॥