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पउमचरित तो एम मणन्ते राहवेण। णिचूढाणेय-महाहवेण ॥७॥ खीरोधमहण्णव-णिम्मलेण। गिष्वाण-महागिरि-अविचछेण ॥८॥
माना पेक्षन्सही जणहाँ सुरकरि-कर-पवर-पवण्डें हिं। पटु णिवद्ध सिरें रहु-सुरंग स य भुव-दण्हें हिँ ॥१॥
[२३. तेवीसमो संधि] तहिं मुणि-सुध्वय तिर वुहयण-कपण-रसायणु । रावण-रामहूँ जुद्ध र णिसुणहु रामायणु ।।
णमिण भडारड रिसह-जिगु । पुणु कव्वहाँ उपरि फरमि माशु ॥१॥ जमें लोयहुँ सुयणहुँ पण्डियहुँ। सदथ-सस्थ परिचडियद्हुँ ।।२।। किं चितई गेहदि सक्कियई। वाण वि जार ण रञ्जिय॥३॥ तो कवणु गदगु अम्हारिस हि। वायरण-विकूण हिं आरिसें हिं॥४॥ कई भरिय अणेय भेय-मरिय। जे सुयण-सास हि आयरिय ॥4॥ चकलाएँ हि कुल हिँ सम्दएँ हिं। पवणुधुअ-पासालु हि ।६।। मारिय-विलासिणि-पकु हि। सुह-कन्दै हिँ सहि खडइ हि ॥७॥ हउँ कि पिण जाणमि मुक्खु मणें । णिय बुद्धि पयासमि तो वि जाणे ॥६॥ जं सयले वि सिहुवर्णे विस्थरिठ। आरम्भिड पुणु राहवचरित ॥९॥
घत्ता भरहहाँ बद्ध पढ़ें तो णिल्यूड-महाहउँ। पणु उज्न मुवि गउ वाण-वासही राहट ॥१०॥