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________________ बावीसमो संधि गिनतीं । महामदान्ध तुम गीत नहीं समझते, क्या मागे छोड़फर राजपट्ट मुझे बाँधा जायेगा ? सज्जन पुरुष भी चंचल चित्त होते है, मनमें युक्त-अयुचका विचार नहीं करते। माणिक्यको छोड़कर काँच कौन ग्रहण करेगा ! फामान्धके लिए किसका सत्य ? आप घरपर ही रहे, शत्रुघ्न, राम, में और लक्ष्मण ( वनके लिए जाते हैं ) तुम भी झूठे मत बनो, हे आदरणीय ! तुम स्वयं धरतीका उपभोग करो ॥१-२॥ [११] भरतके वचन समाप्त होनेपर, अणरण्णके पुत्र दशरथने कहा-“कैकय ( भरत ) के लिए राज्य, रामके लिए प्रवास, मेरे लिए प्रव्रज्या' यही जगमें स्पष्ट है । तुम परमरम्य गृहस्थ धर्मका पालन करो, इसकी तुलनामें कोई धर्म नहीं हैं ? मुनिपरोंके लिए महाप्रधान श्रुत औषधि, अभय और आहारदान दिया जाये । खोटी सीमाका नाश करनेवाले शोलकी रक्षा की जाये । महान् उपयास, जिनकी पूजा की जाये। जिनकी वन्दना, बारह अनुप्रेक्षाओंका चिन्तन और सल्लेखना कालमें समाधिभरण, यह सब धर्मों में परमधर्म है; जो इसका पालन करता है, उसका देव और मनुष्य जन्म होता है ।" यह वचन सुनकर, शुभमति के नाती भरतने अपने मनसे कहा-दे तात! तुमने जो यह कहा कि गृहवासमें सुख हैं । तो तुम, उसे तृणके समान समझकर किस कारण संन्यास ग्रहण कर रहे हो ॥१-९|| [१२] तब खेद ? छोड़कर दशरथने कहा--"यदि तुम मेरे सच्चे पुत्र हो, तो प्रवज्यामें विघ्न पैदा क्यों करते हो? तुम शीघ्र अपने कुलपंशको धुरीको धारण करनेवाले बनो। कैकेयोको जो सत्य वचन मैंने दिया है, हे गुणरत्नराशि, तुम मुझे उससे उमण करो।" तब कोशलकन्याके प्रिय और सीताके पति (रामने) कहा--"केवल धरतीके भोगमें गुण है; क्षण-क्षणमें उक्ति और प्रतिक्तिसे क्या? पिताके वचनका पालन करना चाहिए ।
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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