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________________ पउमचरित गड वुमहि तहुँ मि सहा-मबन्धु । किं रामु मुचि महु पट्ट-वन्धु ॥५॥ सप्पुरिस वि चञ्चल-चित्त होन्ति । मणें जुत्ताजुत्त ॥ चिन्तवन्ति ।।७।। मा णिक मुऍवि को लेइ कच्चु । कामन्यहाँकिर कहिँ वणउ सच्चु ॥८॥ अच्छह पुणु वि घरै सन्तुहशु रामु हउँ लक्षणु । अलिउ म होहि तुई महि मुझे मदारा अप्पुणु' ॥९॥ [१] सुय-वपण-विरमें दससन्दणेण। नुह अणरपणहाँ पन्दपेण ॥३॥ 'केकयह रज्जु रामही पवासु। पवम मय एड जर्गे पमासु ॥२॥ तुहुँ पाले घरासर परम-रम्मु । णड आयहाँ पासिष को वि धम्मु ॥३॥ दिला जइवरहुँ महप्पहाणु। सुभ-मेसह-अमयाहार-दाणु ॥४॥ रविपन्नई सील फुसीम-पासु ।। किजा जिणु-पुज्ज महोषवासु ॥५॥ जिण-वन्दण वासपेपरव-करणु । सल्लेहण-कालु समाहि-मरण ॥६॥ एड्छु सम्बहुँ धम्महुँ परम-धम्मु । जो पालइ तहोंसुर-मणुय-जम्मु ॥७॥ संघयणु सुणेवि सइसणेण । घुबह सुहमइ-दोहितएण ॥6॥ वत्ता 'जह वर-वास सुई एड में ताप वडिवजहि । तो तिण-समु गणेवि कलेण केण एवजहि ॥९॥ [१२] तो खेड्ड मुऍविं दसरहँण घुतु । 'जह सबाड तुहुँ महु तणउ पुत्तु ॥१॥ सो किं पन्चजहें करहिं बिग्घु । कुलवंस-धुरन्धरु होहि सिग्घु ॥२॥ केक्यहें सच्चु र्ज दिपणु आसि । तं णिरिणु करहि गुण-स्वय-रासि ।।३।। सो कोशष्ठ-बुष्हिया-दुल्लाण योनिमाइ सोया-घालण ॥४॥ 'गुणु केवल वसुहहें भुत्तियाएँ । किं खणे-खणे उत्स-पत्तिया ॥५॥ पालिज्जउ तायही तणिय बाय । लइ मछु उधरोहें पिहिवि माय' ॥१॥
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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