SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 339
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३१ चालीसमो संधि सुमित्राके पुत्रने तुरन्त रामसे पूछा, “जटायु दिखाई नहीं देता, सीताके साथ वह कहाँ गया हुआ है ।” उसके कथनको सुनकर रामने जो कुछ कहा, वह प्रिय नहीं था। सीता वनमें नष्ट हो गयी है । खप्तकी षार्ता कोई भी नहीं जानता। जो रगमें अजेय था और जिसने सहायता की थी, वह पक्षी भी युद्ध में मारा गया। किसीने प्रचण्ड दृढ़ भुजदण्डसे ले आकर तल प्रदेश पर मार दिया है।-२०|| [१३] जब राम और लक्ष्मण में परस्पर यह वार्तालाप हो रहा था तबतक विराधित भी अपनी सेनासे घिरा हुआ तत्काल यहाँ पहुँचा । तब जिसने हार्थोकी अंजलि की है तथा महीपीठपर अपना मस्तक झुकाया है ऐसे विद्याधरने बलदेवको उसी प्रकार नमन किया, जिस प्रकार जन्म के समय इन्द्र के द्वारा जिनभगवानको नमन किया जाता है। भारी मलको हरनेवाले रामने आशीर्वाद देकर लक्ष्मणसे पूछा-"जिसने सेना सहित प्रणाम किया है यह कौन है, मानो तारोंसे घिरा हुआ पर्वत हो।" यह सुनकर, स्थिर और स्थूल महाभुजरूपी फलकसे विशाल पुरुपश्रेष्ठ प्रक्ष्मण सद्भाव के साथ राम से इस प्रकार कहता -- हे देव, यह चन्द्रोदरका पुत्र हैं। खरदूषणका शत्रु और मेरा परम मित्र, पहाड़ की तरह स्थिर और स्थूल चित्त । तब इस प्रकार प्रशंसा कर तत्काल लक्ष्मणने कहा कि सीताका अपहरण कर लिया गया है। कहाँ पीछे लगूं ? कहाँ खोजूं, देवके विमुख होनेपर क्या करूँ, राम सीताक वियोगमें मरते हैं, इनके मरनेपर मैं मरता हूँ ॥१-१०॥ [१४] यह सुनकर चन्द्रोदरका पुत्र चिन्तामें पड़ गया। विमन और मलिन देह वह ऐसा लगता था मानो राहुसे पीड़ित
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy