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पदमचारिय
'जं जं किं पि वत्थु ए एषि काल कि
तं तं णिष्फलु कहिं अवरुम्ममि ॥२॥ द्विणो विवरि व सेवित ॥३॥
सङ्गमि खेविड । होड म होउ तो चि ओळग्गमि । सुणि जिह जिण दिन चलणाहँ रुग्गमि । ४ ॥ होस ५॥
विहित कालु बिणजे
एम मणेवि त्तु नारायणु । ताव गवेसहुँ जाम णिहालिय' । साइणु दस दिसेहिं संचलित । जोइस चक्कु णाइँ परियत्तउ |
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'कुठें लग्गेवर केत्ति कारणु ॥ ६ ॥ लहु सण्णाह मेरि अप्फालिय ॥॥७॥ आउ पढीच जय सिरि-मेहिल ॥८॥ सिस सिद्धि ण पत्त ॥५९॥
घत्ता
त्रिजाहर- साह स-धड स-वाह थिउ हेवामुह चिमण मणु 1 हिम-वाएँ दमग्ररन्ददउ गं कोमाण कमल-वणु ॥ १० ॥
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दुबई
चुतु विराहिए 'सुर-वासरे तिहुअण-जय-भयात्रणे । वणें त्रिण होइ वर पणे मुऍ जीवन् सन् ॥ १ ॥
मनुक्कु वह चि असि स्णु लेवि । जहिं अच्छन्द भाशुकशु | घणवाणु जहिँ अवश्य कुमारु । हवन्सु णी णलु जस्त्रचन्तु । अङ्गङ्गय-गयय-गववस्थ जेत्थु | वणेण ण लक्षणु विरुधु । 'सुखविरुद्धेहिं मयज्ञमहि
को जीवइ जनमुपसरेत्रि ॥ २ ॥ पञ्चासुठु मठ भारिच्चि अभ्णु ॥ ३ ॥ हम डुब्नवारु ॥४॥ सुग्गी समर-भर-हन्तु ॥५॥ नहीं वन्धु वह त्रि को इस एन्धु' | ६ ॥ गय-गन्धे णाइँ मइन्दु कु ॥७॥ किं रुम्मद सीहु कुरङ्गमेहि ॥ ८ ॥