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पउमचरित
"on दीसए विहाओ। स-सीयो कहिं गो' ॥७॥ सुणेवि तस्स अम्पियं। तमश्पिर्य ण जं रियं ॥६॥ 'बजे विण? जाणई। ण को वि वत्त जाणाई ॥१॥
पत्ता
जो पक्षि रणेऽजाउ दिण्णु सहेजा ३ सो वि समरें संघारियउ । केणात्रि पचपडे दिव- अ-दगहें णेवि तलप्पएँ मारियड' ॥१०॥
[१३]
दुबई ए आलाव जाव घट्टन्ति परोप्पर राम-लक्खणे ।
ताव बिराहिओ वि वल-परिमिल पनु सहि जि तमस्य ॥॥ तो साव कियाक्लि-हस्थएण । महिनी मीणामिय-मस्थएण ||२|| वलए णमिज विजाइरेण । जिणु जम्मा जेम पुरन्दरण ।।३।। श्रासीस देवि गुरु-मलहरेण । सोमिसि पपुसिलाउ हलहरेण ॥४॥ 'सहुँ सेगणे पणमिउ कवणु पह। सारा-परिमिउ हरिणदेह' ॥५॥ सं घयणु सुणेपिणु पुरिस-सीहु । थिस्-थोर-महाभुअ-फलिह-दीहु ॥६॥ सम्भावें रामही कहइ एम । 'चन्दोथर-गन्दणु पहुं देव ॥७॥ खर-दूसणारि महु परम-मित्त । गिरि मेरु जेम घिर-थोर-चित्तु' ॥ ८॥ तो एम पसंसें वि तक्षणेण हिय जाणइ' अविखार लक्खागेण ॥९॥
धत्ता कहिं कुर्दै लगोसमि कहि मि गवेसमि दइने परम्मुहें किं कमि । बलु सीया-सोपं सरह विभाग एण मरन्त हउँ मरमि' ॥१०॥
[ १४ ]
सं णिसुणेवि षयगु चिन्ताचित चन्दोयरहों णन्दयो । विमणु विसण्य-देहु गह-पौडिउ शं सारङ्गा-हन्छणो ॥१॥