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________________ चालीसमा संघि दुर्धर वे दोनों भिड़ गये। दोनों ही प्रचण्ड वीर और संग्रामधीर थे। इसी बीच जिनका मन हर्षित है, ऐसी देवांगनाओंमें परस्पर वार्तालाप होने लगा कि किसमें अधिक गुण हैं. ? यह सुनकर, जिसके नेत्र कुवलयके समान हैं, जिसका मुख चन्द्रमाके समान है, ऐसी अत्यन्त ईयासे भरी हुई एक अप्सराने दुसरीकी मत्सेना की कि शत्रुशिविरको चूर-चूर करनेवाले खरको छोड़कर नमःोई दूसरा भी है ? गम औरन्ने पौरन काहा--"लक्ष्मणके साथ खर (गधे)की समानता किस प्रकार की जा सकती है, जो कि कभी घटित नहीं हो सकतीं।" इसी बीच निशाचर कुलका प्रदीप खर गरदन में आहत हो गया । कोपरूपी अनल जिसकी नाल है, कटि जिसका कण्टालय है, दशन जिसका पराग है, अधर जिसके पत्ते हैं, ऐसा सिररूपी कमल, लक्ष्मणके सरामने सिरूपी नख के अग्रभागसे काटकर फेंक दिया ॥१-१२।। १८] यहाँ लष्मणने निशाचर सेनाके अष्ठ व्यक्ति (खर) को धराशायी कर दिया। इधर दूषणने विराधितको विरथ कर दिया और उसे हटा दिया। शीघ्र ही उसने युद्ध में सेना, रथ, गज और वाहनोंको पराजित कर दिया । जीवका माइक और शत्रुसेनाका स्वामी दूषण झीन हो झुका । शीघ्र ही उसने केझोंक लिए हाथ फैलाया? किमी प्रकार उसे मारा-भर नहीं । तबतक खरका सिर काटकर आदरणीय लक्ष्मण दौड़ा । अपनी सेनाको अभयदान देता हुआ. शत्रुको ललकारता हुआ कि "दूपण, यदि हो सके तो प्रहार करो, प्रहार करो, या नीचा मुल करके रहो।' यह वचन सुनकर दूषण क्रुद्ध हो गया, वह चित्तमें दुष्ट हो गया। निशाचरराज मुड़ा ठीक उसी प्रकार, जिस प्रकार गजेन्द्र सैकड़ों युद्धोंमें प्रसिद्ध सिंहके ऊपर मुड़ा हो ।
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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