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________________ ૨ पउमचरिय [,] अहवान् किं वहु-चविण राम । हु जिह सिंह वहु-वन्तरे हिं । सासीय बि जोणि-सहिँ आय । भवे भूमि मयङ्करं तु मिताम ॥१॥ जर जम्मण-मरण-परम्परे हिं ॥२॥ तुहुँ कहि मि वष्णु सा कहि मि माय ॥ २ ॥ हुँ कहि मि भासा कहि मि बहिनि तुहुँ कहि मिरएँ सा हि मिस । कहि दिइ सा कहि मि घरिनिव तुहुँ कहि मि महिहिं मा गयण-मम्॥ ५ तुहुँ कहि मिणारिसा कहि मि जोडु । किं सविणा-रिद्धिहें करहि मी ॥ ६ ॥ जगन्तु मम जगु निश्वसेसु ॥3 ॥ तो माणुसु माणुसेण ॥ ८ ॥ उम्मेदट्ट विओोभ- गइन्दरसु । जण धरि जिण वणण । घता एम भणेविणु वे वि मुणि गय कहि मि हण-पन्थें । रामु परिट्टिङ किचिणु जिह धणु कुक्कु लए िस हस्थे ॥९॥ विरहाल जाल पलितन्तणु । सब संसारेंण अस्थि सुड्डु 1 [ 19 ] चिन्ते लग्गु विसरण- मणु || १|| सच गिरि-मंरु लमाणु दुहु ॥ २ ॥ सदर जीविउ जल-विश्दु-लउ ॥३॥ सखंड जर-अम्मण-मरण-मउ | कहाँ घरु कहाँ परियणु बन्धु-जणु । कहीं माय-वधु कहाँ सुद्दि-लयणु ॥ ४ ॥ कहो पुतु मिस कहीं क्रिर वरिणि । कहीं भाय सोयर कहाँ वहिणि ॥ ५ ॥ फलु जाव ताम्र बम्धच सयण । आवासिय पायवें जिह सउण' ॥६॥ रोवन्तु पीचर वीसरिङ ||७|| एम मणेपिणु णीसरिं ।
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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