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पउमचरिय
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अहवान् किं वहु-चविण राम । हु जिह सिंह वहु-वन्तरे हिं । सासीय बि जोणि-सहिँ आय ।
भवे भूमि मयङ्करं तु मिताम ॥१॥ जर जम्मण-मरण-परम्परे हिं ॥२॥ तुहुँ कहि मि वष्णु सा कहि मि माय ॥ २ ॥
हुँ कहि मि भासा कहि मि बहिनि तुहुँ कहि मिरएँ सा हि मिस ।
कहि दिइ सा कहि मि घरिनिव तुहुँ कहि मि महिहिं मा गयण-मम्॥ ५
तुहुँ कहि मिणारिसा कहि मि जोडु । किं सविणा-रिद्धिहें करहि मी ॥ ६ ॥
जगन्तु मम जगु निश्वसेसु ॥3 ॥ तो माणुसु माणुसेण ॥ ८ ॥
उम्मेदट्ट विओोभ- गइन्दरसु ।
जण धरि जिण वणण ।
घता
एम भणेविणु वे वि मुणि गय कहि मि हण-पन्थें । रामु परिट्टिङ किचिणु जिह धणु कुक्कु लए िस हस्थे ॥९॥
विरहाल जाल पलितन्तणु । सब संसारेंण अस्थि सुड्डु 1
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चिन्ते लग्गु विसरण- मणु || १|| सच गिरि-मंरु लमाणु दुहु ॥ २ ॥ सदर जीविउ जल-विश्दु-लउ ॥३॥
सखंड जर-अम्मण-मरण-मउ |
कहाँ घरु कहाँ परियणु बन्धु-जणु । कहीं माय-वधु कहाँ सुद्दि-लयणु ॥ ४ ॥ कहो पुतु मिस कहीं क्रिर वरिणि । कहीं भाय सोयर कहाँ वहिणि ॥ ५ ॥ फलु जाव ताम्र बम्धच सयण । आवासिय पायवें जिह सउण' ॥६॥ रोवन्तु पीचर वीसरिङ ||७||
एम मणेपिणु णीसरिं
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