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________________ एगुमचालीसमो संधि समस्त जीवन निरर्थक है ॥१-९॥ [६] तब परमेश्वर अपना मुँह मोड़कर कहते हैं-"तुम स्त्रीरत्नकी प्रशंसा क्यों करते हो, देखने में देवा मोर होता है, परन्त भीतर रक्तसे लिपटा हुआ है । घृणित और अस्पृश्य दुर्गन्धित देह जो केवल चमड़े के द्वारा हदियोंकी पोटली है। मायामय यन्त्रसे बह घूमता है, नौ नाड़ियोंसे रचित वह स्रवित होता रहता है। आठ कर्मोंकी सैकड़ों गाँठोंसे गथा हुआ । रस, वसा और रक्तकदमसे भरा हुआ। प्रचुर मासका ढेर तथा कृमियों और कीटोंको धारण करनेवाला । खाटकी दुश्मन, और भूमिका भार | भोजन के लिए पोषण और सन्धान करता है। रातमें मृतक और दिनमें जीवित है। निःश्वास और श्वास लेते हुए जीते और मरते हुए जन्म चला जाता है । मृत्युकालमें कृमियोसे काटे गये जिसे देखकर मुख टेढ़ा कर लिया जाता है, जो सैकड़ों मक्खियोंसे घिनधिनाता हुआ है ऐसे उस शरीरका किस प्रकार रमण किया जाता है ।।१-९॥ [७] गतिसे मन्थर वह चरणयुगल पक्षियों के द्वारा खाया जाता हुआ भयंकर हो उठता है। वह सुहावना सुरसिनितम्ब कृमियोंसे किलबिलाता हुआ है। वह कृशोदर और नाभिप्रदेश खाया जाता हुआ भयावना हो जाता है । आलिंगनके मनवाला यह यौवन क्षीण होता हुआ केवल भीषण हो जाता है। जीते समयका वह सुन्दर मुख मरते समय केवल कृमियोंसे काटा जाता है, रंगमें उजला वह अधरबिम्ब सियारोंके द्वारा लुचित किया जाता है। विभ्रमसे भरित वह कान्तिहीन नेत्रयुगल कौओंसे खाया जाता है । कुतूहल उत्पन्न करनेवाला वह केशभार उड़ता हुए केवल भयंकर होता है । यह मनुष्य, वह मुखकमल, वे स्तन, वह प्रगाढ़ आलिंगन? (इन सयको देखकर) लोग अपनी नाक (नासापुट) बन्द कर कहते हैं-छि छिः,
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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