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________________ गुणचालीस संधि ស दिशाओं में देखते हुए ऐसे स्थित हो गये, मानो हाथी हथिनी से वियुक्त हुआ हो, फिर उन्होंने आकाशमार्गको देखा । तब उन्होंने उन दो मुनियोंको देखा कि जिन्होंने नी संगृहीत की थी। उन गुरुओं की गुरुभक्ति कर रामने स्तुति की। ( उन्होंने कहा ) जिसकी भुजाएँ श्रीसे नमित है ऐसे हे राम तुम्हारी धर्मवृद्धि हो, जहाँ सुमेरु पर्वतके समान दुःख है, उस कारण के लिए तुम क्यों रोते हो ? दुष्ट स्त्री बुद्धिको जिसने नहीं छोड़ा उसके लिए नरक रूपी महानदी दुस्तर हो जायेगी। इस प्रकार केवल कापुरुष रोते हैं परन्तु सत्पुरुष इसे तृणके बराबर समझते हैं । श्रीमति व्याधिका अनुकरण करती है, वह क्षणक्षण में दुःख देती है, जरा भी नहीं थकती । वह जिनवचन रूपी औषधिसे मारा जाता है, और फिर सैकड़ों जन्मों भी नहीं आती ||१|| [५] यह वचन सुनकर राम, निरन्तर अश्रुधारा छोड़ते हुए बोले - "ग्राम और श्रेष्ठ नगर प्राप्त किये जा सकते हैं, शीतल विशाल नन्दन वन प्राप्त किये जा सकते हैं। घोड़े और मनवाले महागज प्राप्त किये जा सकते हैं, रथ स्वर्णदण्ड और उड़ते हुए ध्वज प्राप्त किये जा सकते हैं, आज्ञाकारी भृत्यवर प्राप्त किये जा सकते हैं, उपभोग करने के लिए पर्वतों सहित धरती प्राप्त की जा सकती है, घर परिजन और बन्धुजन प्राप्त किये जा सकते हैं, खो, सम्पत्ति द्रव्य और धन प्राप्त किया जा सकता है, ताम्बूल और विलेपन प्राप्त किया जा सकता है, हृदय - इच्छित भोजन प्राप्त किया जा सकता है, भृंगार में रखा हुआ कपूर से मिश्रित जल प्राप्त किया जा सकता है, मनपसन्द प्रियवचन प्राप्त किये जा सकते हैं, परन्तु यह स्त्रीरत्न नहीं प्राप्त किया जा सकता। वह यौवन, वह मुखकमल घछ सुरत और वर्तल हाथ, जिसने नहीं माने, इस दुनिया में उसका
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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