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पडमचरित
गं करि करिणिहें पिच्छोइयउ। पुणु गयपा-मागु भवलोइयड ॥३॥ सहि ताव जिहालिय विणि रिसि । संगहिय जेहिं परलोय-किसि ॥४॥ ते गुरु गुरु-मति करेवि धुय । 'हो धम्म-विधि सिरि-णमिय-भुय ॥५|| गिरि-मेह-समाण जेस्थु दुहु । तहे कारण रोषष्टि का तुहुँ ॥६॥ स्थल तियमइ जेण ण परिहरिय। वहाँ गरम-महाणइ दुतरिय ॥७॥ रोषन्ति एम पर कप्पुरिस। तिण-समु गणन्ति जे सप्पुरिस ॥८॥
धत्ता
तियमह वादे अणुहाइ खाणे खणं दुक्खन्ति ण थाइ । हम्मइ जिण-घयणरेसहण जे जम्भ-पए वि ग दुक ॥९॥
[५] तं षयणु सुणेपिणु भणइ बल । मेल्लन्तु णिरन्सरु अंसु-जलु ।। 5 ।। 'सम्मन्ति गाम-वरपरणई। सीग्रल-विजलई णदण-वण ॥२।। लमन्ति तुरङ्गम मत्त गय। रह ऋणय-दण्ड-धुन्चमात-घर ॥३॥ लमन्ति मिशधर भाग-कर। लभइ अणुारों वि स-भर धर i al लकभइ धरु परियणु वन्धु-जणु । लन्म सिय सम्पय दबु धणु ॥५॥ लठभइ तम्बोलु पिलेवाणउ। लभइ हियइच्छिउ भोयण ॥६॥ लभ भिकारोलम्बियउ। पागि कप्पूर-करम्विया ॥७॥ हिमच्छिउ मणहरू पियवया । पर एहण लाभह निय-रयणु ॥८॥
घत्ता जोन्त्रणु सं मुह-कमलु तं सुरज लबट्टण-हस्थङ । जेग ण मागिइ एस्थु जगें सही जीविउ सब्यु णिरत्थड ॥१||