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________________ पुगुणचालीसमो संधि कराया और शिंशपा वृक्ष के नीचे उसे मैठा दिया। सीताको बनमें छोड़कर, राषण तुरन्त अपने घर गया, तथा धवल और मंगल गीतोंके द्वारा संस्तुत वह स्वयं राज्यका भोग करने लगा ||१९|| उनतालीसवीं सन्धि लक्ष्मण की खोज कर राम अर वापस आते है तो वहीं लताघर है, वही घृक्ष हैं । परन्तु सीता अपनेको नहीं दिखाती । __ [१] बिना सीताका वह वन अपर्जित दिखाई दिया, मानो लगसे विसर्जित कमल हो, मानो विजलीके बिना मेघविन्दु हों, मानो वात्सल्यभावसे रहित मुनिके वचन हो, मानो लवणयुक्तिसे रहित भोजन हो । मानो अवसित जिनप्रतिबिम्ब हो, मानो दानसे रहित कृष्णका धन हो। सीतासे रहित वन रामको इसी प्रकार दिखाई पड़ा। राम फिर लताओंमें घुम कर देखते हैं, वह जानते हैं कि जानकी इनमें छिपकर वठी है। फिर वह पहाड़ोंके विरोंके भीतर देखते हैं. वह जानते हैं कि जानकी गुफाओं में छिपकर स्थित है। उसके बाद बनमें उन्हें जटायु दिखाई दिया, नष्ट हो गया है शरीर जिसका, ऐसा वह युद्ध में पड़ा हुआ था। प्रहारोंसे विधुर जिसका दारीर घूम रहा है, ऐसे निर्दलित जटायु पक्षीको जय रामने देखा तो वह तभी समझ गये कि जानकी हर ली गयी है, और किसीने छल किया है ।।१-८|| [-] फिर उन्होंने उसे (पक्षीको) पाँच णमोकार मन्त्रका (उच्चारण कर आठ मूलगुण दिये कि जो जिनशासन के सार
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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