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परमचरित
लद्देहि जेहिं दिन होइ मइ 1 लखेहि जेहिं परलोय-गाइ ॥३॥ लखेहि जेहिं संमवइ सुहु । लादेहि जेहि णिज्जरइ दुहु ॥४॥ ते दिगण विहकहीं शहण | किय-णिसियर-गियर-पराहण ॥५॥ 'जाजहि परम-सुहागण । अणरणाणसवीर-पहॅण' ॥६॥ तं वयणु पश जि सम्बायोग । माटु माग मिमजिल हमरण .!! जं मुड जहा हिय जगय-सुभ। धाहाविउ उठमा करें वि भुल 1॥८॥
घत्ता 'कदि हउँ कहिँ हरि कहिं परिणि कहिं धरु कहि परियणु छिगणउ । भूय-वलिञ्च कुटुम्बु जगे हय-दइर्वे कह विक्षिा ॥९॥
[३] चल एम भणेवि पमुनिछयउ। पुणु चारण-रिसिहि णियच्छियउ ॥१॥ चारण चि होनित अट्टविह-गुण। जेणाण-पिण्जु सीलाहरण ॥२॥ फल-फुल-पस-गह-गिरि-गमण ।। जल-तन्तुअ-जा-संचरण ॥२॥ सहिं वीर सुधीर विसुख-मण ! गह-चारण आइय वेषिण जण ॥६॥ ते अपही-णाणे जोइयड । रामही कलात विछोइयउ ॥५॥ आजरें वि गल-गम्भीर-झुणि। पुणु लग्ग सवेव मेंह-मुगि ॥६॥ 'भो घरम-देह सासय-गमण । काले रोचहि मूठ-मण ||७|| तिय दुकानहुँ खाणि विओय-णिहि। तहें कारण रोवहि काइँ विहि ॥८॥
घत्ता कि पइँ ण सुश्य एह कह छनीव-णिकाय-क्ष्यावरु । जिह गुणवह-अणुअत्तर्गेण जिणयासु जाड वणे वागरू' ॥९॥
[४] जं णिसुणिज' को वि चवन्तु पहें। मुच्छा-बिहलालु धरणि-वहैं ॥१॥ 'हा सीय' मगन्तु समुट्टियर। चत-दिसउ णियन्तु परिहियर ॥२॥
॥५॥