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पउमचरित
घसा
मेत्रि सीय वर्णे गड रावणु घरहों तुरन्त । वहिं महिं थिउ रज्जु स ई सुअन्तर ॥१॥
गुणचालीant संधि
कुठे लग्गोपणु लम्हों वस्तु जाम पढीवर आषष्ट । से जि पाहरु तं वि तरु पर सीय ण अप्पर दाव ॥
श्रीसीय वणु अचयजिय ।
मेह-त्रिन्दु बिउ । णं मोय लवण-सुप्ति- रहिउ । दति-विषजिड क्रिविण धणु
।
पुणु जोअइ गुहिले हिँ पइसरेंवि पुणु जोवइ गिरि-विवरम्तरेंहिँ । सामन्त दिडु जडाह वर्णं ।
पुणु दिष्ण तेण सुद्ध वसु-हारा । जं सारभूय जिण सासनहीं ।
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णं
'सरहु
रुच्छि - विसनियर ॥१॥ णं सुणिवर वय अन्वच्छलउ ॥ १ ॥
अरहन्त विम्बु णं अवसति ॥ ३ ॥
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तिह सीय चिह्नण दिदु वणु ॥ ४ ॥
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थिय जागइ जाणह ओसरे वि ||५|| थिय जाणइ सिक्केंषि कन्दरेंहिँ ॥ ६ ॥ संसूत्ति पढिड र ॥ ७ ॥
घन्ता
पहर - विदुर-घुम्मन्त-तणु जं दिछु पवित्र मिलियउ । साहस राहण हिय जान केण वि खलियड ॥८॥
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उब्बारेंवि पञ्च णमोकारा ॥ १ ॥ जे मरण-सहाय भव्य - जगहों ॥२॥