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________________ १०१ पउमचरित घसा मेत्रि सीय वर्णे गड रावणु घरहों तुरन्त । वहिं महिं थिउ रज्जु स ई सुअन्तर ॥१॥ गुणचालीant संधि कुठे लग्गोपणु लम्हों वस्तु जाम पढीवर आषष्ट । से जि पाहरु तं वि तरु पर सीय ण अप्पर दाव ॥ श्रीसीय वणु अचयजिय । मेह-त्रिन्दु बिउ । णं मोय लवण-सुप्ति- रहिउ । दति-विषजिड क्रिविण धणु । पुणु जोअइ गुहिले हिँ पइसरेंवि पुणु जोवइ गिरि-विवरम्तरेंहिँ । सामन्त दिडु जडाह वर्णं । पुणु दिष्ण तेण सुद्ध वसु-हारा । जं सारभूय जिण सासनहीं । [] णं 'सरहु रुच्छि - विसनियर ॥१॥ णं सुणिवर वय अन्वच्छलउ ॥ १ ॥ अरहन्त विम्बु णं अवसति ॥ ३ ॥ · तिह सीय चिह्नण दिदु वणु ॥ ४ ॥ 1 । थिय जागइ जाणह ओसरे वि ||५|| थिय जाणइ सिक्केंषि कन्दरेंहिँ ॥ ६ ॥ संसूत्ति पढिड र ॥ ७ ॥ घन्ता पहर - विदुर-घुम्मन्त-तणु जं दिछु पवित्र मिलियउ । साहस राहण हिय जान केण वि खलियड ॥८॥ [२] उब्बारेंवि पञ्च णमोकारा ॥ १ ॥ जे मरण-सहाय भव्य - जगहों ॥२॥
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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