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________________ अट्टतीसमा संधि २१९ यह अलमण किसे बताऊँ । मुझे कौन सान्त्वना देता है ? कौन सुधि है ? किसे इतना बड़ा दुःख है। मैं जहाँ-जहाँ जाती हूँ, वह, यही प्रदेश जल रहा है ॥१-९|| [१६] उस अवसरके आ पड़नेपर दक्षिण लषणसमुद्र के विशाल किनारेपर जिसके हाथमें श्रेष्ठ तलवार है ऐसे रणमें दुधर एक प्रचण्ड विद्याधर था। वह भामण्डल की सेवामें जा रहा था। इसनेमें आगे उसने सीताको आक्रन्दन करते हुए सुना । उसने शत्रुकी ओर विमान मोड़ा। मानो कोई स्त्री कह रही है कि मेरी रक्षा करो। वह राम और लक्ष्मण दोनोंको पुकारती है । भामण्डलका नाम लेती है । शायद यह सीता, और यह रावण है। क्योंकि पर-नीको सतानेवाला दूसरा नहीं हो सकता। राजा { भामण्वुल ) के पास जाना रहे आज इसके साथ मुझे लड़ना चाहिए-यह विचार कर उसने पुकारा और ललकारा कि तुम स्त्री लेकर कहाँ जाते हो ? दोनोंके लड़नेपर, जिस प्रकार एक मारता है और जिस प्रकार दूसरा मारा जाता हैं। हे रावण, मुड़ो-मुडो, सीताको लेकर कहाँ जाते हो ॥१-९।। [१७] त्रिभुवन कण्टक रावण मुड़ा, और जिस प्रकार सिंह सिंहसे भिड़ जाता है, जिस प्रकार गजेन्द्र गजेन्द्र पर आघात करता है, जिस प्रकार मेघके ऊपर मेघ दौड़ता है उसी प्रकार महायली राषण और विद्याधर भिड़ गये। दोनों शिविकायानों में प्रतिष्ठित थे। दोनों नाना आभरणोंसे प्रसाधित थे। दोनों अपने अस्त्रोंसे प्रहार कर रहे थे । दोनों एक दूसरेपर आक्रमण कर रहे थे । भामण्डलका अनुचर विद्याधर अपने मन में विरुद्ध हो उठा। अपने हाथमें श्रेष्ठ तलवार लेकर उसने रावणके विशाल-वक्षास्थलपर आघात कर दिया। घुटनोंके जोतोसे)घूमकर गिर पड़ा । दसों स्रोतोंसे रक्त बहता दिखाई दिया । विद्याधर पुनः बोला; "क्या तुम सैकड़ों देवयुद्धोंमें दुनिबार त्रिभुवन
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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