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पउमचरित
पत्ता चेयणु लहवि र भडु टुिट कुरुह स-मच्छरु । तहों विजाहरहाँ थिउ रासिहि णा सणिकर ॥१०॥
[१८ ] उठिंड वीसपाणि अलि लेन्तड। गाइँ स-विज्नु मेहु गजन्सउ ॥१॥ विजा-छेउ कवि विज्ञाहरें। बत्ति अम्यूदीबन्भन्तर ॥२॥ पुणु दससिरु संचल्लु स-सीयंउ । गहरले गाई दिवायरु वीयउ ॥३॥ मज्म समुदही जयसिरि-मागणु। पुणु घोल्लेवएँ लग्गु दसागणु ॥४॥ 'काइँ गहिल्लिएँ मई ण समिछहि । किं महएघि-पटु ण समिच्छहि ॥५॥ किं णिकष्टड रज्जु महे। पुरक काय सगुन । कि महु कंण वि भग्गु मडपफर । किं दूहउ किं कहि मि असुन्दर' ॥७॥ एम भणेंवि आलिङ्गइ जावे हिँ। जणय-सुयएँ णिन्मच्छिउ ताबें हि॥
बत्ता 'दिवस हि थोच हि सु? रावण समरे जिणेवर । अम्ह हुँ वारियएँ राम-सरे हिँ अलि चड' ॥९॥
[ १५ ] णिटुर-वयणे हिं दोच्छिा जाहिं । दहमुहु हुअउ विलक्खड ताव हि।। ५॥ 'जह मारमि तो एह ण परमि। बोल्ला सत्रु हसेषिणु अरमि॥२॥ अघसें के दिवसु इ इच्छेसह। सरहसु कण्ठ-गहणु कोसइ ॥३॥ 'अण्णु वि महूँ शिय-वर पालेव्वउ । माष्टएँ पर-कलत्तु ण लएम्वउ' ॥ एम भणेवि चलिउ सुर-ढामरु। लङ्क पराइड लख-महावस ॥५॥ सीथएँ वुत्तु 'ण पइसभि पट्टण। अच्छभि एल्धु विउलें णन्दणवणे ॥६॥ जाव ण सुणमि स मत्तारहौं। ताय णिविन्ति मज्नु आहारहीं '॥७॥ तं णिसुर्णेवि उबवणे पइसारिप । सीसव-रुक्ख-मूळे घसारिन ॥॥