SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 306
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २९ पउमचरित घत्ता को संथवइ मई को सुद्धि कहाँ दुक्खु महन्तउ । जहिं अहिं जामि हउँ तं तं जि परसु पलिनड' १९॥ [१६] तहि अवसर वन्ने सु-विउलाएँ। दाहिण-छवण-समुदहाँ कूलएँ ॥१॥ अस्थि पचण्ड्ड एकालिमाटर। . उर-रहाल इन्ध रण वृतरु ॥२॥ मामलहों वलिउ ओलग्गएँ। सुअ कन्दन्ति सोष तामगएँ ॥३॥ चलिउ विमाणु तेण परिपक्वहीं। णं सिय का वि भणा मह रक्सहो॥४॥ लक्षण-राम वे वि हक्कारह । भामण्डलही णामु उच्चारइ ॥५॥ मन्छुड एह सोय एदु रावणु।। अण्णु ण पर-कलत-संहावा ॥६॥ अच्छउ णिवहीं पासु जाएवउ । एण समाशु अज्जु जुम्झेवठ' ॥७॥ एम मणेवि तेण हकारित। 'कहिँ तिय लेघि जाहि' पञ्चारिउ॥८॥ धत्ता 'विहि मि भिडन्ताहुँ जिह हणइ एक्कु जिह हम्मई । गेगहें वि जणाय-सुय वलु बलु कहि रात्रण गम्मइ' ॥९॥ [१७] वषिड दसा,गु तिहुश्रण-कण्टउ । सीहही सीहु आम अभिट्टा ॥१॥ जेम गइन्दु महन्दहों घाउ । मेहही मेछु आम उद्धाइन ॥२॥ मिबिय महाबल विजा-पाणे हिं। वे वि परिष्ट्रिय सिविया-जाणे हि ॥३॥ वे वि पसाहिय णाणाहरण हिं। वेणि विषावरति णिय करणेहि ॥ वेणि वि घाय देन्ति अवशेप्पर । म विरुद्ध मामण्डल-किङ्करु ॥५॥ वर-करवालु फरेषिणु करयलें। पहउ इसाणणु बियढ-उरस्थीं ॥५॥ पहिउ घुलेपिपणु जण्हुच-जोत्तेहि। लहिरु पदरिसिब दसहि मि सोसहि॥७॥ पुणु घिमाहरेण पञ्चारित । 'सुरषर-समर-सऍहि म-णिधारिउ॥॥ गहुँ सो रावणु सिहुवपण-कण्ट । एक्क धाएँ गबर पलोहिउ' ॥९॥
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy