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________________ अट्टतीसमो संधि किया । तीव्र प्रहारसे दुःखी और आक्रन्दन करता हुआ जटायु रण में जानकी, लक्ष्मण और राम तीनोंके चित्तको गिराता हुआ गिर पड़ा ॥१-९॥ [१४] जब तड़फता हुआ जटायु गिर पड़ा तो सीताने खूब आक्रन्दन किया। अरे-अरे, दुर्विदग्ध धूर्त देवोंके युद्ध में अपने परिहासको भी तुम रक्षा नहीं कर सके । इस चंचुजीवी पक्षीका सुभटत्व श्रेष्ठ है कि जो युद्ध में दशाननसे भिड़ गया। तुम अपने बड़प्पनकी रक्षा नहीं कर सके। मैंने सूर्यका भी सूर्यष देख लिया। सचमुच चन्द्रमा भी चन्द्रग्रहीत है, ब्रह्मा ब्राह्मण हैं, शिव दुष्ट महिला है (अर्ध नारीश्वर होने के कारण ), वायु भी चपलतासे दमित कर लिया जाता है। धर्म भी सैकड़ों रॉड़ों के द्वारा ले लिया जाता है। वरुण भी स्वभावसे शीतल होता है । शत्रुसेनाको उससे क्या शंका हो सकती है ? इन्द्र भी आकाशपथसे रमण करता है, इस प्रकार देवसमूहके द्वारा किसकी रक्षा की जा सकती है ? कहनेसे क्या, जगमें दूसरा अभ्युद्धार करनेवाला नहीं है। इस लोकमें मेरे राम शरण है, और परलोकमें जिनवर ॥१-९॥ ___ [१५] फिर भी सीता प्रलाप करती हुई ठहर नहीं रही थी। "जो हो सके तो पीछे लगो, पीछे लगो।" मैं इस पापीके द्वारा अपमानित कर और त्रिभुवनमें मनुष्यहीन समझकर ले जायी गयी हूँ। वह फिर भी करुण विलाप करती हुई कह रही थी कि सत्पुरुषके लिए यही अवसर है। अथवा यदि राम और लक्ष्मण दोनों होते तो कौन मुझे क्रन्दन करते हुए इस प्रकार ले जाता! हा गुणसागर ससुर दशरथ, हा पिता जनक देखो। हा अपराजिता! हा कैफेयी ! हा सुप्रमा! हा सुन्दर मति सुमित्रा! हा शत्रुघ्न, भरतेश्वर भरत | हा सहोदर भाई भामण्डल । हा-हा फिर राम, हा लक्ष्मण । किसे स्मरण करूँ और
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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