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परमचरित
घत्ता
पहिउ जबाइ रण वर-गहर-विहुर-कन्दन्त । बाप्पह-हरि-वलहुँ तिगिह मि चित्तई पाहन्तउ ॥९॥
[१४] पबिउ जडाइ ज ज फन्दन्त। सीग्रएँ किट अन्दु महन्सड ॥2॥ 'अहाँ अहाँ देवही रणे दुवियष्टढहाँ। णिक परिहास ण पालिय सपनहीं ॥२॥ वरि सुहडतणु चञ्चू-जीवहाँ । जो अभिट्टु समरें दसगीवहीं ॥३॥ पउ तुम्हें हिं रक्खिड वकृत्तणु। सूरही तणउ दिठ्ठ सूरतणु ॥ ४ ॥ सवा घनु नि चन्द-नाहिल्लङ। पम्मु वि सीतिर हरु घुम्महिलङ॥५॥ घाउ वि धवलत्तणेण दमिजइ। धम्मु कि रण्ड-सपदि लइ जइ ॥६॥
वरुणु वि होह सहा सीयलु। तासु कहि मि कि सर पर-बलु ॥७॥ · इन्दु वि इन्दवहेण रमिजाई । को सुरवर-सपढ़ें हिं रखिल ॥६॥
यत्ता जाउ कि अम्पिय जगे अपणु ण अन्भुद्धराउ । राहउ इह-मवहाँ पर-लोयहाँ जिणवरु सरणउ' ॥९॥
[१५] पुणु वि पलाव करन्ति ण थकाइ । 'कुठे लाउ लगउ जो सका।।१॥ हउँ पारेण पुण अवगणे चि। णिय तिहुअणु अ-मणूसड़ मपणे वि' ॥२॥ पुण वि कलुणु कन्दन्ति पयः । 'ऍहु अवसरु सप्पुरिसह) व ॥३॥ अह मह कवणु पोइ कन्दन्ती। लपवण-राम चे वि जइ हुम्ती ॥४॥ हा हा दसरह माम गुणोहि । हा हा जणय जणय अवलोयहि ॥५॥ हा अपराइ' हा हा केकह। हा सुप्पड़े सुमित्त सुग्घर-मह ॥६॥ हा सत्तहण मरह भरसर हा भामण्डल माइ सहोबर ॥७॥ हा हा पुशु वि राम हा फक्तण । को सुमरमि कहाँकहामि असतण॥८॥