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________________ अट्टतीसमो संधि [१०] भीषण सिंहनादको सुनकर, धनुषको अपने हाथमें सज्जित कर, तथा तरकम युगल लेकर राना मोडे, माया लक्ष्मण युद्ध में मारे गये हैं रामका पीछा करते हुए शकुन शुभ निमित्त नहीं दे रहे थे, दुनिमिस हो रहे थे । चाँह सहित उनका बायाँ नेत्र फड़क रहा था। लक्षणहीन दक्षिण पवन बह रहा था। कौआ विरस बोल रहा था । शृंगाल रो रहा था । आगे साँप मार्ग काट रहा था। सियार लँगड़ाता हुआ दौड़ा, जैसे मना किये जानेपर स्वजन आ गये हों। दायीं ओरसे नाग उठा। आकाशमें नवों ग्रह विपरीत स्थितिमें प्रतिष्ठित हो गये । तब वह वीर इन सबकी उपेक्षा करता हुआ दौड़ा, और एक क्षणमें उस संग्रामभूमि में पहुँच गया । रामने लक्ष्मणके तीररूपी हंसोंके द्वारा तोड़े गये, आकाशरूपी महासरोवरके सिररूपी कमलोंको धरतीतलपर पड़ा हुआ देखा ॥१-२|| [११] राघवचन्द्रने युद्ध प्रांगणको इस प्रकार देखा जैसे लक्ष्मणने बसन्त क्रीड़ा की हो। जिसमें कुण्डल-क्रट क-मुकुटरूपी फल दिखाई पड़ रहे थे, दनुरूपी दमन मंजरी दिखाई दे रही थी, गीधोंकी कतारों द्वारा नरवरोंक सिररूपी गेदोको लेकर चक्राकार आन्दोलन किया जा रहा था, युद्धमें परस्पर चर्चरी खेल खेला जा रहा था, और फिर रक्तरूपी मदिराका पान किया जा रहा था, ऐसे उस युद्धरूपी वसन्तमें रमण और प्रहार करते हुए लक्ष्मणकी रामने प्रशंसा की-“हे वत्स, साधु, यह केवल तुम्हें शोभा देता है, और दूसरे किसके लिए यह उपयुक्त हो सकता है ? तुमने इक्ष्वाकु कुलको आलोकित किया है । तुमने अपने यशका लंका तीनों लोकोंमें बजाया है।" यह सुनकर आदरणीय लक्ष्मण कहता है-“हे देव, यह बहुत बुरा किया जो आप आये । हे राम, जनकसुताको छोड़कर आप उस स्थानसे क्यों चले ? मेरा मन कहता है कि सीता हर ली
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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