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पउमचरित
[ १२ ] पुणरवि सुश्च मसाय-वपण। हज कमि णाउ किउ अपणे ॥१॥ तं णिसुणेवि णियत्तइ जा हिं। सीया-हरणु पकिट ता हि ॥२॥ आउ दसाणणु पुष्फ-विमाणे। णाई पुरन्दर सिधिया-जाणे ॥३॥ पासु पक्किा राहव-धरिणि । मत-गइन्दु जेम पर-करिणि ॥४॥ उभय-कर हि मंचालिय-धाणहाँ। णाई सरीर-हाणि अप्पाणहाँ ॥५॥ णा, कुलही मवित्ति हकारिय। लकह सक पाइँ पहसारिय ॥६॥ गिसियर-लोयहाँ बज्जासणि । णा मयकर-राम-सरासणि ॥७॥ णं जस-हाणि साणि बहु-दुकान परलोय-दिपिसिन बस "
पत्ता तरपणे रावणेश बोहउ विमाणु आयासहों। काले कुन्द्र प्य हिब जीवित वण-वासही ॥५॥
चलित विमाणु जं जे गयपक्षण। सीमाएँ कलुणु पकन्दिउ तखणे॥१॥ सं कूवाह सुणेवि महाइड। धुणे घि सरोरु जहाइ पधाइज ॥२॥ पहउ दसाणणु चन्चू-धाएं हि। पनुक्खे हि णहर-णिहाएँ हिं ॥३॥ एक-चार ओससइ ग जायें हिं। सयसघ-बार महापछ सावे हि ।।४।। जाद घिसण्टुलु वरि-घियारणु चन्दहासु मण सुमाइ पहरणु ॥५॥ सीय वि घरह मिया वि रक्षइ । लाइ उविसु गयणकडाइ ॥६॥ दुवम्यु-बुस्खु त धीरवि अप्पड । कर-
गिर-द-ऋविण-तलप्पज ॥७॥ पहर विहङ्गु पबिउ समरनणें। देखें हिं फलथल कियउ जहङ्गणे ॥४॥