________________
११२
पउमचरिख
[१०] मोसणु सोह-णाउ णिसुपिणु। धणुहरू करें सजोड कापिणु ॥१॥ तोणा-जुबलु लएवि पधाइउ । 'मझुडु लकषाणु रणे चिणिवाइज'॥२॥ कुढे लगन्ने समें सुणिमित्त है। सउणु ण देन्ति होन्ति दु-णिमितह् ॥ ८ ॥ फुरह स-धाहर वामउ लोयणु। पचाइ दाहिण-पवाणु अझपखणु॥ ३ ॥ बायसु विरसु रसइ सिव कम्बइ। अगाएँ कुहिणि भुभामु छिन्दः॥५॥ जम्बू पङ्गुरन्त उदाहय । गाई गितारा सत्रण पराइय ॥६॥ दाक्षिणेण पिङ्गलय समुहिय । ण णव गह विवरीय परिट्रिय ॥७॥ तो वि वीस अवगगण वि घाउ 1 तमपणे ते सङ्गामु पराइड ॥६॥
घन्ता दिवइ राहत्रेण लक्षण-सर-हसें हिं खुडियई। गमण-महासरहाँ सिर-कमलई महिमले परियई ॥५॥
[1] दिटु रणगणु राहयचन्द। रमिड वसन्तु गाई गोबिन्द ॥१॥ कुण्डल-कडय-मउड़-फल-दरिसिय | दागु-दवणा-मञ्जरिम पद रसिय ॥२॥ गिद्धावलि-किया-चक्कन्दोल। परवर-सिरसाएपिणु केल: ॥३॥ रणे खेल्लन्ति परोप्पर चच्चरि । पुणु पियन्ति मोगिय-कायरि॥४॥ तेहउ समरस्वमन्तु रमन्तउ । लक्खणु पोमाइड बहरन्त ॥५॥ 'साहु वच्छ पर तुयु जि लाइ। अण्णहाँ काम पुर पहिवाइ ॥६॥ पर इक्वाउ-बसु उन्नलिउ जस-पडउ तिहुआ अहालिर॥॥ सं पिणेपिणु भणइ महाइउ । विरुअउ कि रेय जाइ॥ ८॥
घत्ता मेस्लेवि जणय सुय किं राहत्र थागहों चलिया । अ५E मज्म मगु हिय जाणइ केगा वि छलिया' ॥५॥