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________________ भहतीसमो संधि लो लो। यदि तुम्हे कुमार्गमें जाना है, तो इसे लो लो। यदि अपना बड़प्पन खण्डित करना चाहते हो तो इसे लो लो। यदि जिनशासन छोड़ना चाहते हो तो इसे लो लो। यदि सुरवरोसे लज्जित नहीं होते तो इसे लो लो। यदि तुम नरकके लिए अपना गमन सज्जित करना चाहते हो तो इसे लो लो। यदि परलोक नहीं जानते हो, तो इसे लो लो। यदि अपनी आयुको तुम नहीं मानते तो इसे लो लो। यदि अपने राज्य को नहीं चाहते तो इसे लो लो। यदि यमशासन देखना चाहते हो तो इसे लो लो। यदि अपने प्राणोंसे विरक्त हो तो इसे लोलो यदि बाणोंसे उड़ना चाहते हो, तो इसे ला लो।" इन असुहावने। शब्दोंको सुनकर कामदेवसे अत्यन्त व्याकुल होकर रावण कहता है--"यही एक मनुष्यनी स्त्री है जो यदि एक मुहूर्त के लिए जिला देती है, तो उस शिवके शाश्वत सुखकी तुलनामें मेरे लिए यही बहुत हैं" ॥१-२| [९] रावणके विषयासक्त चित्तको पहचानकर और निश्चित जानकर विद्याने कहा-“हे दशानन सुनो, भेद बताती हूँ 1 उन दोनों के बीच एक संकेत है, या जो युद्धके मैदानमें सुभट दिखाई देता है, जो खर-दूषणकी सेनामें युद्धरत है। इसका सिंहनाद सुनकर अपनी प्रिय पत्नीको तिनकेके समान समझकर यह मिहके समान गरजकर और अपना वनावर्त धनुष अस्फिालित कर दौड़ेगा। तुम फिर बाद में धन्या (सीता) को उड़ा लेना, और पुष्पक विमानमें डालकर उसे चला देना ।" यह सुनकर राजाने कहा-"तो तुम जल्दी नाद करो।” स्वामीके आदेश से विद्या दौड़ी और एक पलमें संग्राम स्थलपर पहुँची। जिसमें लक्ष्मणका स्वर गृहीत है, ऐसा सिंहनाद जब सुनाई दिया तो राम धनुष सहित ऐसे दौड़े जैसे आकाशमें नवमेध हो ॥१-२।।
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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