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पडसचरिङ
गिग्वाण-महागिरि धीरिमाएँ ।
रयणायर-गुरु गम्भीरमाऍ ॥ ८ ॥
पत्ता
रिसि सङ्घाहिवइ सो आठ भउज्स भारत । 'सिवपुरि-गमणु करि' दसरहहाँ जाइँ हक्कारत ॥९॥
काले ।
पढिएं तर्हि ते मामण्डल मण्डल परिहरन्तु । यदेहि-विरह-वेण सहन्तु । परिहन्ति ण विजाहर-तिबाद । जलद्दणचन्द्र कमल - सेज । वाहिज्जइ विरहें दूसद्देण ।
सासु मुएप्पिणु दीहुदीहु । 'भूगोयरि अमि मण्ड लेवि ।
[ ५ ]
सो पुरे रहणेउरवालें ॥१॥ अच्छा रिसि सिद्धि व संमरन्तु ॥२॥ दस कामावथ्थड क्यन्तु ॥३॥ पडणा-खाण सोयण - किया ॥४॥ दुक्कन्ति जन्ति अणोरण वेज ॥५५॥ पट फिटर केण वि ओसहेण ॥ ६ ॥ पुणवि थिउ थक्केंवि जेम सी ॥७॥ णीसरि सन्साह सणदेवि ॥ ८ ॥
घत्ता
पतु यह पुरु से णिषि जाउ जाईसरु | 'अष्णहिं भव- महण देउँ होन्तु एस् रज्जेसरु ॥९॥
[ ६ ]
संभवि भवन्तरुणिरब सेसु ॥ १ ॥ 'कुण्डलमण्टि गार्मेण राड ॥ २ ॥ पिक्लु णामेण कुबेर भट्ट्टु ॥ ३ ॥ परिवसह कुडीर किर वरा ॥ ४ ॥ सवि मरें वि सुरक्षा कहि मि पत्तु ॥ ५॥ णि देवें जाणइ - जमल- जाउ ॥ ६॥ पुप्फवइहें पहूँ साथ दिष्णु ॥ ७ ॥
मुच्छामि तं ऐक्सेंवि परसु । सदभावें पद्मणि तेण ताउ । हउँ होन्तु पृथु अखलिय-सरट्टु ससिके - दुहिय अवहरेंवि आट उहि मई वहाँ से कलत्त | सुख हड भि षिदेहहें देह आज । वर्गे चलि कण्टेण विण भिष्णु ।