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________________ बाबीसमो संधि अच्छा और हितकारी है कि जिससे अजर-अमर पद प्राप्त किया जा सके ।।१-९॥ [३] किसी दिन इस प्रकार हम-जैसे ज्ञानी लोगोंकी भी कंचुकीके समान अवस्था होगी। मैं कौन ? भूमि कौन ? किसका धन ? सिंहासन और अत्र सब स्थिर है। योपन शरीर और जीवनको धिक्कार है। संसार असार है। अर्थ अनर्थ है। विषय विष हैं । बन्धु दृढ़ बाँधनेवाले हैं, घर और द्वार पराभवके कारण हैं। सुत शत्रु हैं। अर्जित धनका अपहरण कर लेते हैं । बुढ़ापे और मृत्युके अनुचर क्या करते हैं। जीवको आयु हवा है; बेचारे हय आहत होते हैं; स्यन्दन खण्डित हैं, जो चले गये, वे गये, लौटकर नहीं आते। तनु सृष्ण है, जो एक अाणमें नाशको प्राप्त होता है। धन धनुप है, जो गुण ( प्रत्यंचा गुण) से टेढ़ा देड़ा जाता है। दुहिताएँ भी दुष्ट हृदय हैं, माता भी माया होती है । चूँकि समान भाग लेते हैं इसलिए वे भाई हैं। इनको और भी सबको राधबके लिए समर्पित कर मैं स्वयं तप करूँगा । दारथ यह विचारकर स्थिर हो गये ।।१-२|| [४] उस अवसरपर एक श्रमण संघ आया, जो उस अवसरपर परसिद्धान्त रूपी हवाके लिए अलंध्य गिरि था, जो खोटी इच्छा, मद और कामदेवको नष्ट करनेवाला था, जो भयसे पीड़ित भूजनोंका उद्धार करनेवाला था, जो साँपके समान विषम विषयरूपी विषके वेगको शान्त करनेवाला था, जिसने क्षमा और दमकी नसैनीसे मोक्षगमन किया है, जिन्होंने तपश्रीरूपी श्रेष्ठ रमणीका शरीर आलिंगित किया है, जो कलिके कलुपरूपी जलके शोघगके लिए सूर्य है, जो तीर्थ करके चरणकमलोंका भ्रमर है, जिसने मोहरूपी महासुरके नगर में उपद्रव मचाया है, ऐसा एक ऋषिसंध आया। उसमें, जिन्होंने संसारकी थाह माप ली है, जो विषयोंसे विरक्त देह हैं,
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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