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पउमचरिउ
के दिवसु वि होसष्ठ आरिसाहुँ। कम्युइ-अषस्थ अम्हारिसाहुँ ।।१।। को हुई का महि कहाँ तणउ दुग्छु । सिंहासणु छत्तइँ अधिरु सन्छु ।।२।। जोवणु सरीरु जीविउ धिगत्थु । संसार असारु अणरथु भत्थु ॥३।। विसु विसय वन्धु दिव-वन्धणाहै। घर-दार परिहव-कारणाई ।।४।। सुख सन्तु घिउत्तर अवहरन्ति । जर-मरणहें किक्कर किं करन्ति ।।५।। जीचाउ वाउ हय हय घराय। सन्दण सन्दण गय गय जेणाय ||६|| सणु सणु जें खणखें खयहाँ जाइ। धणु धणुजि गुणेण वि वझुथाइ ।।७।। दुहिया वि दुहिय माया वि माय । सम-माउ लेन्सि फिर तण माय ।।८।।
वत्ता भाय मत
मिला लमति : अप्पुणु तउ करमि' घिउ दसरहुँ एम पियप्पेंवि ॥२॥
[५] तहि अवसरें आइउ सवण-सबघु। पर-समयसमीरण-गिरि-अलघु ॥३॥ दुम्महमह चम्मह-महा-स्सीलु । भय-भङ्गुर-भुअणुचरण-लील ॥२॥ अहि-षिसम-विसय-विस-बेय-समागु | खम-दम-णिसणि-किप-मोक्ख-गमणु१३ तबसिरि-घररामालिनिअङ्ग । कलि-कलुस-सलिल-सोसण-पयङ्गु ॥४॥ तिस्थकर-घरगम्घुरुह-मसरु । किम-मोह-महासुर मायर-डमा ॥५॥ तहि सच्चभूइ णाम साहु । गाणिय-संसार-समुन्याहु ॥६॥ मगहाहिउ विलय-षिरत्त-देह। अघहस्थिय-पुत्त-कलत्त-णेहु ॥७॥