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________________ पडतीसमो संधि २८३ उसे वक्षःस्थल में बंध दिया। तीरोंसे छेदफर सिरोंको भेदकर उसने, शत्रुको धरतीपर गिरा दिया। देवश्रेष्ठोंने अपने प्रचण्ड हाथोंसे लक्ष्मण के सिरपर पुष्पवर्षा की ॥१-९|| अड़तीसवीं सन्धि जन लामणने त्रिसिरको युद्ध के मैदान में मार दिया, तब त्रिभुवनके हिार भय उत्पन्न करनेवाल: गवा डाँ पहुँच' । [१] जो लेख भेजा गया था, वह जाकर सुरसिंह रावणके सामने पड़ा हुआ था। वह इस प्रकार पड़ा हुआ था जैसे अनेक दुःखोंका भार हो, जैसे निशाचर-कुलका संहार हो, जैसे कलह की भयंकर जड़ हो, जैसे दशाननके सिरका दर्द हो। लेखपत्रने अभिज्ञानसे सब बता दिया कि शम्बुकुमार प्राणोंसे जा लगा है, और खड्गरत्न छीन लिया गया है। खरकी पल्लीके छुदयको विदारित कर दिया है, यह सुनकर यझो. भूषण खर और दूषण जाकर शत्रु सेनासे भिड़ गये हैं। वहाँ अनुपम और सुभग नारीरत्न है, हे रावण, वह तुम्हारे योग्य है।" लेख पत्र पढ़ कर, और अपना आस्थान छोड़कर, रावण गरजकर पुष्पक विमानमें बढ़ गया, और हाथमें तलवार लेकर दौड़ा; एक पलमें कह दण्डकारण्य पहुँच गया। तत्र लक्ष्मणने खर-दूषणकी सेनाको अबरुद्ध कर दिया। संशयमें पड़ी हुई चतुरंग सेना आकाटामें निश्चल बह गयी ।।५-१०| [२] तब इसी बीच दीर्घनयन दशमुखने लक्ष्मणकी महासा की-'अकेला भी, सिंह अच्छा, ( बुणगानन) मृग समूह अच्छा नहीं | अकेला भी मृग लांछन ( चन्द्रमा) अच्छा, परन्तु लोहन
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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