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एउमपरित
घत्ता णाराएँ हि मिन्दें वि सीसइँ छिन्दै वि रिख महि-मण्डले पाडियउ । सुरखरें हिं पञ्चगडेहि सह भुष-दण्डहिं कुसुम-वासु सिर पानियड ॥९॥
अदृप्तीसमो संधि तिसिरउ लक्खणेण समरजणे धाइड जाहि । तिहुश्रण-उमर-करु इधयणु पराइट सा हिं॥
लेहु विसजिउ जो सुर-सोहहों। अगएँ पडिउ गम्पि दसगीवहाँ ।। १४ पहिउ पपा बहु-दुक्रवहँ मारु 1 गाइँ णिलायर-कुल-संधार ॥२॥ णा मयङ्कर कलहहाँ मल। णाई दसाणण-मस्था-सूल ॥३॥ लेहें कहिउ सध्यु अहिणाणे हि । 'सम्बुकुमार उलगड पाणे हिं ॥४॥ अपणु वि खग्ग-रयणु उदालि । खर-धरिणिह हियवउ विद्यारिउ ॥५॥ तं णिसुणेपि वे वि अपभूसण। पर-वले मिडिय गम्पि खर-दूसण ॥६॥ णारि-नमणु णिरुवमु सोहग्राउ । अच्छह रावण तुझ्नु जे जोग्गड' ॥७॥ लेहु णि बि अस्थाणु विसजेंद्रि। पुष्फविमाणे चहिउ गलगन्ज वि ॥८॥ करें करवाल करेपिणु धाइर। णिविसे दण्डारण्णु पराइड ॥९॥
घत्सा साव जणरणेण सरदसण-साहणु रुदउ । थिउ चरा बलु पहें णिचलु संसऍ छुद्धउ ॥१०॥
तो एरथन्तरें दोहर-गयणे । लक्खागु पोमाइउ दाहषयणे ॥१॥ 'वरि एकल्लयो षि पत्राणणु। उ सार-णिबहु वुण्णाणणु ॥२॥ वरि पल्लो चि मयलञ्णु । ण य गरवत्त-णिवा णिलछणु ॥३॥