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वरि एकलओ कि रयणाय । यरि एकलओ वि षड्सारु । उह सहस एक्कु जो रुम्म पेक्खु फेम परस्तु पईसह ।
पउमचरिउ
ra अलवा हिणि-नियरु स- विष्वरु ॥४॥ उवण- बिटु स-फ्लु - गिरिवरु ॥५॥ सो समरण मह मि णिसुम्भ ॥ ६ ॥ धणुहरु सरु संधाणु ण दीसह ॥७॥
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घन्ता
हि गय हि सुरय णहि रहबर णहि धय-दण्डइँ |
वरि पड़ता हूँ दीसन्ति महिय रुग् ॥ ८ ॥
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हरि परन्तु पसंसि जावें हिं ।
जाइ परायणक विषय तायें हिं ॥१॥
सुक-कह व सु-सम्धि सुसन्धिय । सु-पय सु-वगण सु-सद सुन्वद्रिय ॥ २ ॥ किस मज्झा बिम्बे सु-विरार ॥३॥ पम्पिटिरिन्छोडि विलिणी ॥४॥ मग उरम्भ-निशुम्भण ॥५॥ णं माणस सरें वियसि पक्क ||६||
थिरकलहस-गमण गड्-मन्थर । मावलि मगरहरुसण्णी ।
अहिणव-हुए- पिण्ड पीण- स्थण |
福
रेहइ वरण-कमलु अफलङ्कर ।
सु-ललिय- कोयण कलिय-पसष्णहुँ । णं वरइत मिलिय वरकण्णहं ॥
घोल पुट्टिहिं देणि महाइजि ।
चन्दण-लब िल णं णाणि ॥ ८४ ॥
सो एयन्त मिश्र कूल-दीव | 'fter एक्कु सहल पर एग्रहों ।
घत्ता
किं बहु पिएँ तिहिँ भुवर्णेहिं अं जं चन । वे गिम्मि अङ्ग ॥९॥
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रामु पसि पुणु दहगीवें ॥१३२ जसु सुहवत्तणु गउ परियहों ॥२॥
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