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________________ १८४ वरि एकलओ कि रयणाय । यरि एकलओ वि षड्सारु । उह सहस एक्कु जो रुम्म पेक्खु फेम परस्तु पईसह । पउमचरिउ ra अलवा हिणि-नियरु स- विष्वरु ॥४॥ उवण- बिटु स-फ्लु - गिरिवरु ॥५॥ सो समरण मह मि णिसुम्भ ॥ ६ ॥ धणुहरु सरु संधाणु ण दीसह ॥७॥ । घन्ता हि गय हि सुरय णहि रहबर णहि धय-दण्डइँ | वरि पड़ता हूँ दीसन्ति महिय रुग् ॥ ८ ॥ [ ] हरि परन्तु पसंसि जावें हिं । जाइ परायणक विषय तायें हिं ॥१॥ सुक-कह व सु-सम्धि सुसन्धिय । सु-पय सु-वगण सु-सद सुन्वद्रिय ॥ २ ॥ किस मज्झा बिम्बे सु-विरार ॥३॥ पम्पिटिरिन्छोडि विलिणी ॥४॥ मग उरम्भ-निशुम्भण ॥५॥ णं माणस सरें वियसि पक्क ||६|| थिरकलहस-गमण गड्-मन्थर । मावलि मगरहरुसण्णी । अहिणव-हुए- पिण्ड पीण- स्थण | 福 रेहइ वरण-कमलु अफलङ्कर । सु-ललिय- कोयण कलिय-पसष्णहुँ । णं वरइत मिलिय वरकण्णहं ॥ घोल पुट्टिहिं देणि महाइजि । चन्दण-लब िल णं णाणि ॥ ८४ ॥ सो एयन्त मिश्र कूल-दीव | 'fter एक्कु सहल पर एग्रहों । घत्ता किं बहु पिएँ तिहिँ भुवर्णेहिं अं जं चन । वे गिम्मि अङ्ग ॥९॥ [ ४ ] रामु पसि पुणु दहगीवें ॥१३२ जसु सुहवत्तणु गउ परियहों ॥२॥ 1 1 ! 1
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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