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________________ सत्ततीसमो संघि २७५ मुकुट से मुकुट टूटने लगे। मेखलाएँ मेखलासमूहसे टूटने लगी। कितने ही योद्धा उठते हैं, तिनकेके बराबर समझते हुए, दैन्य या मानके कारण ममस्कार नहीं करते । अथवा कोई योद्धा दैन्य के कारण नमस्कार करता भी है तो खड़ा हुआ यह सेनाके भारके कारण उठ नहीं पाता। क्रोधसे भरे हुए और अहंकारसे तैयार होते हुए योद्धाओंको दूषणने मना किया"तुम्हें राजाकी शपथ (आज्ञा) है, यदि तुमने क्रुद्ध होकर, एक भा कदम आगे बढ़ाया। तुम कार्य मत बिगाड़ो । तबतक चुप बैठो। जो बलपूर्वक तलवाररूपी रत्नका अपहरण करता है, विद्याम पारंगत कुमारका सिर काट लेता है क्या वह तुम-जैसे लोगों के द्वारा मारा जा सकता है ।।१-९| [२] इसलिए अच्छा है कि तुम मेरी बात मानो। हे राजन्, असहाय व्यक्तिकी मंसारमें सिद्धि नहीं होती। बिना तारकके नाय नहीं चलती। बिना वाके आग भी नहीं जलती । तुम अकेले क्यों जाते हो ? समुद्र होते हुए भी तुम प्यासे मरते हो । महागज होते हुए भी बैलपर चढ़ते हो । जिनकी पूजा करते हुए भी संसारमें पड़ते हो। जिसका यम सारथि है और जो स्पष्ट रूपसे विश्व में एकमात्र वीर है, इन्द्र के बझसे जिसका शरीर निर्मित हैं, जो विश्वका सिंह और शत्रुकुलके लिए प्रलयकाल है, जो शत्रुसेनाक लिए बड़वानल है, बाहुओंसे विशाल है; जो दुर्दम दानवरूपी ग्राहोंको पकड़नेवाला है, जो ऐरावतकी सूंडके समान स्थिर और स्थूल बाहुवाला है, जो त्रिलोककी भटशृंखलाको तोड़नेवाला है, दुर्दर्शनीय भीषण और यमकी तरह आघात पहुँचानेवाला है । ऐसे उस त्रिभुवनमल्ल, देवमन में पीड़ा उत्पन्न करनेवाले देवोंको सन्तापदायक रावणसे जाकर कहा जाये कि शम्बुकुमार शुभगति को प्राप्त हुआ है और अब आप पीछा करें (आक्रमण करें)" ॥१-९||
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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