SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 282
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७४ पउमचरिउ मेहलु मेहल - गिवण मम् ॥ ४ ॥ ओहाषण-भार्णे ण वि णमन्ति ॥ ५ ॥ पढियो वि ण उट्टर मडु भरेण ॥ ६ ॥ चिडफड सण्णज्झन्ति जोड़ ॥ ७ ॥ सो होम रायहाँ तणिय आण ॥८॥ पत्ता में कज्जु विणासही नाम बईसहों जो अभि-रय मण्ड हरइ | सिर खुद्द कुमार विज्ञा-पारहों सी कि सुम्महिं ओवरड् ॥ ९ ॥ उण मज तुवि लग्गु । उद्धन्ति के षि तिण-समु गणन्ति अहम को विणि रामेण । । दूसणेण शिवार व कोह 'जड़ पर वि देहु आरूसमाण । माणव दुमाह-गाहु | लोक-भुषग्गल-भड तक | [9] तो घरि किन महु तणिय बुद्धि गाव वि ण चह विष्णु तारपूर्ण । एक गम्णुि काहूँ रहि । सन्तेषि महाएँ बिस चढहि । असारदि कुटु भुषणेकवीरु । जग केसरि अरि-कुल-पय-कालु । णरवद्द असहायहाँ णत्थि सिद्धि ॥ १ ॥ जलशुविण जल विष्णु माकण ॥ २ ॥ रमणारे सम् खिसाएँ मरहि ॥ ३ ॥ जिर्णे भविए वि संसारें पढहि ॥ ४ ॥ सुरवर-पहरण- चड्डिय सरीक ||५|| पर-बल-बगलामुडु भुभ-विसालु ॥६॥ सुरकरि-कर-सम-थिर-थोर- वाहु ॥10॥ दुरिसण मीलण जम- सडक ॥८॥ धत्ता तहाँ तिहुअण-माँ सुर-मण-सह शिवस-विन्द-संतावणहाँ । गड सम्व सुहग्गद्द पहँ लगाइ गप्पि कहिजा रावण ॥९॥
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy