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________________ सन्नतीसमो संधि २७३ देवताओं के लिए भी असाध्य दिखाई दिया। उसने खड्ग ले लिया है और मेरे मला किया है देवदेव, और भी देखिए, किस प्रकार उसने मेरी काँख और पक्षःस्थल विदीर्ण कर दिया है। धाड़ मारकर रोती हुई भी वनमें पकड़कर उस मनुष्यने किसी प्रकार मेरा भोग-भर नहीं किया, अपने पुण्योंसे, नखानसे विदीर्ण होनेपर भी उसी प्रकार बच गयी, जिस प्रकार सरोवरमें कमलिनी हाथीसे बच जाती हैं ॥१-२|| [७) उसके वचन सुनकर बद्भुत जाननेवाली दूसरी रानियोंने समझ लिया कि मालूर के समान विशाल और स्थूल स्तनोंवाली इसी कुलटाके ये काम हैं । शायद उस पुरुषने इसे नहीं चाहा होगा इसीलिए यह अपनेको क्षत-विक्षत करके आयी है। इसी बीच जब राजा देखता है तो उसे नवसमूह-धिदारित वह दिखाई दी। पलाश लताको तरह वह लाल रंगवाली थी, लाल कमलोंकी मालाकी तरह भ्रमरोंसे आच्छन्न थी। दाँतोके अग्रभागसे काटा हुआ उसका अधर ऐसा दिखाई दिया मानो फागुनके माह में बालसूर्य उदित हुआ हो। जसके नेत्रकटाक्षसे खर एकदम विरुद्ध हो उठा मानो मैगल हाथीकी गन्धसे सिंह लुब्ध हो उठा हो । भौंहोसे भयंकर और मुंहसे कराल वह सुभट ऐसा लग रहा था मानो विश्व के लिए प्रलय उठ आया हो। देवता भी काँप उठे और इस प्रकार बोले कि आज खर किसके ऊपर क्रुद्ध हुआ है। रथ खड़ा कर दिया गया। अरूप शशि और वरुणके साथ मैं भी (खर) उस आदमीको सिर्फ निगलकर रहूँगा ।।५-२|| [4) उसके उठते हा योद्धा समूष्ट उठ खड़ा हुआ । पलमात्रमें दरबार में क्षोभ उत्पन्न हो गया । एक दुसरेको चूर-चूर करते हुए योद्धा पहुँच मानो समुद्रग्ने अपनी मर्यादा छोड़ दी हो । सिरसे सिर, पट्टसे पट्ट, चरणसे चरण, हायसे हाथ भिड़ गये १८
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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