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________________ २७० पउमचरित काहि केण खुखिड फणि-मणि-णिहाउ । कहें केप सहिउ सुर-कुकिम-घाज॥७॥ कहि केण हुआसणें सम्प दिष्ण । का कण इसाणण-पाय छिपण ॥४॥ पत्ता चन्दहि पोलिय अंसुजलोलिय 'अण-बल्लहु महु तणस सुर। श्रोलगाइ पाणे हिं विणय-प्रमाणे हि णरबह सम्युकुमार मुड ॥२॥ [५] भायपणे वि सम्युकुमार-मरणु। संतान-सोय-विभीय-करणु ॥१॥ पपिरल-मुह पाह-मरन्त-णयणु दुक्खाउरु दर-ओठुल-वया ॥२॥ खरु रुयह स-दुक्खइ अतुल-पिण्ड । हा अज्जु पछिउ महु पाहु-दण्ड ॥३॥ हा अजु जाय मण गअ सङ्क। हा अज्नु सुग्ण पायालला ॥४॥ हा णग्दण सुर-पत्राणणासु। कबणुत्तर देमि दसाणणासु ॥५॥ एस्थमतरें ताम तिमुण्ड-धारि। बहु-बुद्धि पजमिन वम्भयारि ॥६॥ 'हे गरबा मूडा अहि काइँ। संसार भमम्स हुँ सुन-सया ॥७॥ आया मुभाई गया जा। को सफाइ राय गणेवि ताई ॥ घत्ता कहाँ बरु कहाँ परियणु कहाँ सम्पय-धणु माय बप्पु कहाँ पुत्तु सिर । के कर्जे रोवहि अप्पड सोयहि भव-संसारहाँ पर किय' ॥२॥ [६] जंदुक्खु दुख्नु संघिउ राउ। पडिबोलि णिय-घरिणिएँ सहाउ ॥१॥ 'कहे केश वहिउ महु तण उ पुत्तु' । तं धयणु सुणे वि धणिआएँ घुसु ॥२॥ 'सुणु णरव दुग्गमें दुग्यवेसें। दुग्धोइ-घट्ट-घट्टण-पसें ॥३॥ पहाणण-लक्नुपरणय-फराले। सहि नेहा दण्डय-धणे विसाले ॥४॥ घे मणुसु दिट्ट सोडोर बीर। महारविन्द-सण्णिह-मरीर ॥५॥ कोवण्ड-सिलीमुह-गहिय-हस्य । पर-बल-बल-उस्यलण-समस्थ ॥६॥
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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