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________________ ससतोसमी संधि २६९ बोली-"इससे काम नहीं बनेगा, आज कौन मुझपर आक्रमण कर सकता या मुझे मार सकता है।" वह इस प्रकार कहकर गरजकर पैरोंसे धरती चौपकर, अतुल शरीरवाले खरदूषण वीरों के पास क्रन्दन करती हुई गयी ॥१-१०॥ [३] दीनमुख वह रोती हुई पहुँची। जिस प्रकार मेघ, उस प्रकार आँखें बरसाती हुई। लम्बे समग्र कटितल तक लटकती हुई केशराशि ऐसी मालूम होती थी, मानो चन्दनलतासे साँप लटके हुए हों। द्वितीयाके चन्द्रमाके समान अपने नखोसे उसने स्वयंको विदारित कर लिया । रक्तकी धाराओंसे उसके स्तन लाल हो गये; मानो केदारसे रंगे हुए स्वर्ण कलश हो । मानो वह राम और लक्ष्मणकी कीर्ति दिखा रही हो, मानो खरदूषण और रावणको भवितव्यता हो, मानो निशाचर लोकके लिए दुःखकी खान हो। मानो मन्दोदरीके एकपको हन हो, जागो लंकामें प्रवेश करती हुई शंका हो, वह एक पलमें पाताललंका पहुँच गयी। वह स्त्री अपने घर में धाड़ मारकर इस प्रकार रोने लगी, मानो खरदूषण के लिए भारीने प्रवेश किया हो।" क्रन्दन सुनकर, त्रीको देखने के लिए राजाने मुड़कर इस तरह देखा, मानो त्रिभुवनके संहार और प्रलय करने के लिए कृतान्तने ही अवलोकन किया हो ॥१-९।। [४] उमका क्रन्दन सुनकर कुलभूषण दूपणाने चन्द्रनखासे पूछा, "बताओ किसने यमके नेत्र निकाले हैं, बताओ किसने कालका मुख देखा है ? बताओ किसने कृतान्त का मरण किया है। बताओ किसने वृषभ और काबिकेयके परको पकड़ा। बताओ किसने पवनसे पवनकों धोंगा है ? बताओ आगसे आगको किसने दग्ध किया हैं ? बताओ वनसे वनको किसने छिन्न किया है। बताआ किसने जलको जलसे आज प्रहण किया है ? वताओ उष्णतासे किसने सूर्यको तपाया है,
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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