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खर-धरिकिऍ
पदमचरि
चुतु 'ण होइ कज्जु । को वारह मार मह मि वज्जु' ॥३॥
घत्ता
सा एव मणेपिणु गलगज्जेपिणु चलणेंहिँ अप्फादेवि महि । खर दूसण-वीरहुँ अतुल सरीरहुँ गय वारें चन्दणहि ॥ १०॥
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जलहर जिह सिंह बरिसन्ति णयण ॥ १ ॥ णं चन्द्रण-लयहँ भुअङ्ग खा ॥२॥ अप्पाणु विचारिs जिय हे हिं ॥ ३ ॥ णं क - कलस कुङ्कम विठिति ॥ ॥ ॥ खरसंग रावण भविति ॥५॥ णं मन्दोयरिहं सुपुरिस- हाणि ॥ ६ ॥ निविसेण पत्र पायाळलक ॥७॥ खरमण पट्ट मारि ॥८॥
वस वधाइ दण-वरण | सम्बन्ति लम्ब कडियल समग्ग । वीया-मयलञ्ण-सणिहेहिँ । रुहिरोडिय ण-विष्यन्त-रत्त । णं दाव क्षण-राम-किसि ।
णं णिलिवर - लोयहाँ दुक्ख-खाणि । घणं हे पहारन्ति सङ्क | निय मन्दिर बाहाचन्ति णारि ।
पत्ता
वारु सुणेपिणु धण पेक्खेपिराएँ क्लेंवि पलोइयउ ।
तिहुय संघारें वि पलउ समारेंचि णाइँ कियन्तें जोउ ॥ ९॥
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कूवारु सुर्णेवि कुल-भूस
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कहें केणुप्पाड जमहाँ जय कहि केण कियन्तहाँ कियड मरयु कहि केण व पवणेण पष्णु । *हि केण भिष्णु वजेण वज्जु । कहि केण भाणु उण्हेण सति ।
पिपुच्छय दूसणेण ॥ १॥
कहें केा पजोहड काल- जय ॥२॥
कहि केण क्रिषड विस- कन्द-चरणु ॥ ३ ॥ कहि केण दख्ख जलण जणु ॥४॥ कहि क्रेण धरि कहि केण समुद्र
जल जला अज्जु ॥ ५ ॥ तिसाऍ खविउ ॥ ६ ॥
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