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________________ सस्तीसमो संधि २६५ [२] फिर-फिर बढ़ती हुई वह किलकारियाँ भरती हैं। ज्यालावलीकी सैकड़ों ज्वालाओंको छोड़ती है। भयसे भयंकर कोएज्वालासे सहित वह ऐसी जान पड़ती थी मानो धराने अपनी प्रवर बाँह उठा ली हो, या तो आकाशरूपी नदीके रविरूपी कमलके लिए अथवा मानो मेघोंके उद्धारके लिए। मानो वह, जिसमें तारारूपी सैकड़ा बुदबुद बिलाये गये हैं ऐसे मेंरुपी दहीको बिलोती है, चन्द्रमारूपी लोनीपिण्डको लेकर दौड़ती है, जैसे बह ग्रहरूपी बालकके लिए पीठा दे रही हो । अथवा बहुत विस्तारसे क्या ? मानो वह आकाशरूपी शिलाको अपने सिरके ऊपर ले रही है। मानो लक्ष्मण और रामरूपी मोतीके लिए वह एक क्षणमें आकाश और धरतीरूपी सीपको फोड़ना चाहती है । रामने तब कहा-“हे वत्स वत्स, तुम वधूके चरितको देखो देखो।" तिनके बराबर भी नहीं काँपते हुए चन्द्रनखा बोली- "खड्ग उठाओ। जिस प्रकार तुमने पुत्रका बध किया, उसी प्रकार तुम तीनों खाये मारे जाते हुए अपनेको बचाओ।" ॥१-५॥ [२] उस अशुभ वचनके कारण लक्ष्मणने तलवार दिखा दी। दृढ़ कठिन कठोर उत्पीड़न है जिसमें ऐसे अंगूठेके आपीड़नसे, वह तलवार उसी तरह थरथरा उठती है, जिस प्रकार पतिके भयसे अच्छी खी। जो अनवरत मद झरता है, तथा जो मनुष्योंका नाश करने वाला है, ऐसे गजेन्द्रके गण्डस्थल के विदीर्ण होने पर, तलबारकी धाराओं में जो मोतीसमूह लग गया था, वह ऐसा लगता था, सानो प्रस्वेद के कण बहूको लग गये हों। इस प्रकार अपने उस खगको लेकर लक्ष्मण विद्याधरीसे बोला-"जिसने तुम्हारे पुत्रका सिर काटा है यह बद्द सूर्यहास तलवार है। यदि कोई युद्धका भार उठाने में समर्थ हो, तो उन सबके लिए धर्मका हाथ उठा हुआ है।" तब खरकी पत्नी
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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