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________________ सत्तलीसमो संधि २१५ , के अन्तर से ( वह लक्षणवत होती है। ) सामुद्रिक शास्त्र में वर्णित किया जाता है कि इन लक्षणोंसे युक्त स्त्री चक्रवर्तीकी पत्नी होती है और उससे चक्रवर्ती पुत्र होता है ॥१-१५।। [१५] लक्ष्मणने कहा कि मैं कहता हूँ, हे राम, यह स्त्री लक्षणोंसे 'शून्य है । जाँधों, उरस्थल और हाथोंसे यह मांसल हैं। इसके चंचल नेत्र हैं । यह चलने में जल्दी करती है। इसके पैर कछुएकी तरह उन्नत हैं। अँगुलियाँ विषम हैं। हिलते हुए कपिल केशोंवाली। इसके समूचे शरीरपर रोमराजी उठी हुई हैं । इसके पुत्र और पति भी मर जायेंगे। जिसकी कमर कलंकयुक्त हैं, और भौंहें भी मिली हुई हैं, हे देव ! वह निश्चयसे वेश्या होगी । तीतर के समान लोचनवाली दरिद्र होती है। कबूतर के समान आँखोंवाली लोगोंका भोजन करनेवाली होती है । कौए के समान दृष्टिवाली और कौए के समान स्वरवाली केवल दुःखोंकी पात्र होती हैं । स्थूल और मन्थर नामिकामवाली वह दासी होती है, बहुत कहने से क्या ? कमर तक बालोंवाली मसली नाभि और मुखवाली, अनेक भयोंसे भास्वर वह (भारी) राक्षसी होती हैं । कटु अंगोंवाली, गजेन्द्र के समान छविवाली इस कन्याका मैं करण नहीं करता हूँ। तब चन्द्रनखा कहती हैं---"क्या अपने स्वभाव से लज्जा करूँ, यदि मैं निशाचरी हूँ तो आज मैं अपने हाथोंसे तुम्हारा भोग करूँगी" ॥१-११|| सैंतीसवीं सन्धि लज्जासे रहित चन्द्रनखाने गरजकर इस प्रकार कहा"मरो सरो, भूतोंको अन्यि देती हूँ ।" अपने रूपसे बढ़ती हुई, वह ऐसी लगी मानो युद्ध के उत्साहसे सहित राम और रावणकी कलह हो । -
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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