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पउमचरित
पत्ता भाएँ हिँ लवणे हि सामुएं वणि [य] सुणिजह । चक्काहिवहाँ तिय बच्वइ पुत्तु उप्पजइ ॥१५॥
[ ५] बहु राहम एह अलक्षणिय । हउँ मणमिण लक्षणेण मणिय ॥१॥ जशोरु-करेहि समंसलिय । चल-लोयण गमणुसापलिय ॥२॥ कुम्मुण्णय-पय विसमलिय। धुन-कषिक-केसि खरि पनुलिय(?)॥३॥ सम्बा -समुट्टिय-रोम-रह । तहें पुरुवि भत्तारु वि मरइ ॥ ४॥ कवि-लश्छाय मउँहाबलि-मिलिय । सा देव निरुत्तर झेन्दुलिय ॥५॥ दालिसिणि तिमिर-लोयणिय | पारेवयच्छि जण-भोजणिय ।।६।। विरसउह-दिष्टि विरस उहा ला दुकायम हो। ५५ ||७|| णासमा थोरै मशरण । सा लजिय कि बहु-विरथरेण ॥ ८॥ कहि-विहुर-णाहि (?) मुह-मासुस्थि । सा रपरससि बहु-भय-मासुरिय ॥९॥ कडु-अनिय मत-गइन्द-छवि। हउँ एहिय परिणमि कण्ण णवि ॥ १०॥
घत्ता
पभणइ चन्दहि किं णियय-सहावें लजमि । जह हउँ णिसिमरिय वो पहमि अम्ल सई भुमि' ॥११॥
सत्ततीसमो संधि
बन्दपहि भल जिम एम पगजिय 'मरु मरु भूयहुँ देमि वलि' । णिय-रूवें पतिय रण-रसें अड्डिय रावण-रामहुँ गाइ कलि ॥