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________________ । छसोसमी संधि ५६५ भवनमें जाती हूँ। अवश्य ही एक आदमी विवाह कर लेगा। उसने तत्क्षण मनपसन्द रूप बना लिया। उसने जो रूप किया वह कामदेवको भी कुतूहल उत्पन्न करने वाला था। वह वहाँ गयी जहाँ तीनों लोग थे ! भिर मह या भर में दहाड़ मारकर रोने लगी। जनकसुता सीता बोली, "राम, देखो कन्या क्यों रोती है ? जो समयसे छिपा हुआ था, वह दुःख मानो इसे उद्वेलित कर रहा है" ॥१-२॥ __ [१२] पापका हरण करनेवाले बड़े भाई रामने रोती हुई, उससे पूछा, "हे सुन्दरी, तुम क्यों रोती हो, क्या तुम्हारे ऊपर कोई स्वजनका दुःख आ पड़ा है ? या फि क्या कहीं किसीने तुम्हारा पराभव किया है ?' यह वचन सुनकर बाला बोली, "हे राजन् , पापिनी दीन दया करने योग्य, बन्धुहीन घेचारी, मैं रोती हूँ | अनमें भूल गयी हूँ। मैं दिशा नहीं जानती । यह भी नहीं जानती कि कौन-सा देश और विषय (प्रान्त ) है ? कहाँ जाऊँ, चक्रव्यूह में पड़ गयी हूँ। मेरे पुण्योंसे तुम मुझे मिल गये। यदि हमारे ऊपर तुम्हारा मन हा तो दोनों में से एक मुझसे विवाह कर ले।" यह वचन सुनकर रामने अपना नाखून खोद लिया। ( मना कर दिया)। मुंहपर हाथ रख लिया । भौहें टेढ़ी कर ली, और सिर चलाया। किसी चीजमें अति अच्छी नहीं होती। उन्होंने लक्ष्मणका मुख देखा ॥१-९|| [१३] जो राजा अत्यन्त सम्मान करनेवाला होता है, विश्वास करो कि वह अर्थ और सामर्थ्यका हरण करनेवाला होता है। जो मित्र अकारण घर आता है, विश्वास करो कि वह दुष्ट स्त्रीका अपहरण करनेवाला होता है। जो पथिक रास्तेमें अधिक स्नेह करता है विश्वास करो कि वह स्नेहहीन चोर है । जो मनुष्य लगातार चापलूसी करता है वह निश्चयसे जीयका हरण करनेवाला शत्रु है । जो कामिनी कपदपूर्ण चाटुता ॥
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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