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पउमचरित
हियइपिछड' तक्षणे छड किड । णं कामही कोड (1) 0 ति विहिउ ॥७॥ गय तहि जहि तिणि विजगविणे । पुशु पाहहिं स्वहिं ला खण ५६॥
धत्ता पभणइ जणय-सुय 'वल पेक्खु कण्ण किह रोवइ । जं कालन्तरिड तं दुफ्छु णाई उक्कोचाई' ॥१॥
[१२] रोखम्ती मलहरेंण। हक्काघि पुग्छिय इलहरेंण ॥३॥ 'कहि सुन्दरि रोवहि काइँ तुहुँ। किं पहिड किं पि णिय-सयण-वुहु ॥२॥ कि केण पि कहि त्रि परिमविप। तं वाणु सुचि पाक विथ ॥३... . हर पाविणि दीण दयावणिय । णिन्वन्धष रुमि घराय णिय ॥४॥ वण भुस्लो उ जाणाम दिसउ । ण जाणमि कवणु सु विसउ ॥२॥ कदि गछमि चाचूहें पडिय। महु पुण्णेहिं तुम्ह समावलिय ॥६॥ जइ श्रम्ह हुँ उपरि अस्थि मणु | तो परिणउ विषह वि एक्कु जणु ॥७॥ चयः सुधि हुलाउहण । किय णक्यकोही राहवण |
घत्ता करमल विषाणु मुह किय वक मह सिरु चालिड । 'मुम्दर ण होइ बहु सौमित्तिहँ क्यणु णिहालिउ ॥९॥
[ १३ ] जो जरघई अह-परमाण-करु। सो पत्तिय अत्थ-समस्थ-हरु ॥१॥ ओ होह उवायणे वच्छला। सो पत्तिय विसहरु केवला ॥२॥ जो मित्त अकारण एई घरु। सो पत्तिय दुद्छु कलत्त-हरु ॥३॥ जो पन्थिर अलिय-सणेहियउ। सो पत्तिय घोह अगेहियउ ॥४॥ जो णरु अस्थक ललि-कह। सो सत्तु णिसाड जीव हरु ॥५॥ जा कामिणि कषद-चाच कुणह। सा पग्लिय सिर-कमलु पि लुणाइ ॥६॥