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________________ २५१ छत्तीसमो संधि की नदी (कृष्णानदी) को छोड़कर दे चले । वन में कहींपर उन्होंने मत्त गज देखे। कहींपर सैकड़ों पक्षी उड़े मानो उस अटबीके प्राण ही उड़कर जा रहे हो। यनमें कहीं मयूर नृत्य कर रहे थे।....कहीं पर हरिण इस प्रकार भयभीत थे, जसे संसारसे भयभीत संन्यासी हों । कहींपर, नाना प्रकारकी दृक्षराजी मानो धरतीरूपी कुलवधकी रोमराजी हो । उस दण्डक वनके आगे कौन्च नामकी नदी दिखाई दी जैसे स्थिर गमनवाली उत्तम कामिनी हो ॥१-९॥ [२] क्रौंच नदीके किनारे-किनारे होते हुए वे एक लतामण्डपमें जाकर बैठ गये । शीघ्र शरद् ऋतुके आनेपर वनमें महाद्रुम सुन्दर कान्तिवाले हो गये । नवनलिनियों के कमल इस प्रकार विकसित थे मानो स्त्रियोंके हँसते हुए मुख हो । निरन्तर निकलते हुए धवल आकाशरूपी महागजने अपने मेघरूपी कलशोंसे उसी क्षण अभिषेक कर....उस सुहावनी शरद् अतुमें जो अपने हाथमें धनुष और तीर लिये हुए हैं तथा जो गरजते हुए हाथियोंको पकड़ लेता है ऐसा लक्ष्मण बनमें भ्रमण करने लगा। इतनेमें सुगन्धित वायु आयी जो पारिजात पुष्पोंसे उत्पन्न थी। उस सुगन्धित वायुसे भ्रमरकी तरह आकर्षित होकर, लक्ष्मण उसी प्रकार दौड़े जिस प्रकार हथिनीकी गन्धसे हाथी दौड़ता है ।।१-२॥ _[३] थोड़ी ही दूरपर सन्तुष्ट मन लक्ष्मणने वंशस्थलको इस प्रकार देखा मानो सज्जनसगृह ठहरा हुआ हो, मानो व्याधसे त्रस्त पशुसमूह हो । एक वंशस्थल (बाँसोंका झुरमुट) के पास आकाहसमें उसने यमकी जीभकी तरह भयंकर, कुतूहल उत्पन्न करनेवाला, नाना प्रकार के फूलोंसे अंचित खड्ग देखा। जो मानो लक्ष्मणका उद्धार करनेवाला, मानो शम्बुकुमारके लिए यमकरण था। यह सूर्यहास नामकी तलवार थी जिसके
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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