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२५.
परमचरित
कत्थ वि लाषिय सउण-सय । णं श्रष्ठवि र वि पाण गर ॥५॥ काध वि कलाप णचम्ति वण। णाघड् णहावा जुषा-जणें ॥३॥ काय इ हरिण भय-मीया। संसारहों जिह एण्याइयाई ॥७॥ काय वि णामाबिह-रूप रख-राइ । णं महि-कुलबहुअहें रोम-राइ ॥६॥
घत्ता सहाँ दण्ण दः गएँ ८५५ जाति जामें कोणइ घिर-गमण पणाई वर-कामिणि ॥९॥
कोणाइ तीरेण संसियाँ। लय-मण्ट गम्पि परिट्रिय ॥१॥ छुड जें छुटु जें सरयहाँ आगमणे। सम्छाथ महादुम जाय चणें ॥२॥ णव-पलिणिहें कमल विहसिया । णं कामिणि-वयण पहसियर ।।३।। घवलेण णिरन्सर-णिगऍण। घण-कलसें हिं गयण-महग्गऍण ॥३॥ अहिसिश्चेवि तक्रवणें वसुह-सिरि । णे थविय अबाहिणि कुम्महि ।।५।। नहिं तेह" सर सुहाषणएँ। परिममइ बणणु काणणएँ ॥९॥ कोबण्ड-सिलीमुहाहिय-करु। गजन्त-मत-मायङ्ग-धरु ॥७॥ व साम सुसन्धु वाद अइ। जो पारियाय-कुसुमम्महिउ ॥८॥
घन्ता कदिउ भमक मिह ते वार सुद तु सुअन्धे । धाइड महुमहणु जिह गउ गणियारिह गम्धे ॥५॥
थोवातरें परिलोसिय-मणेण । वसस्थलु लक्षित लक्षणेण ॥१॥
सयण-बिन्दु आषासियर। णं मराउलु वा तासियउ ॥२॥ भगणेक-पासे कोडावणउ | जम-जीह जेम भासावण ॥३॥ गपणणे खग्गु णिहाफियङ।। णाणाबिह-कुमुमोमालियन ॥४॥ करखणहाँ णाई अम्भुन्तुर । णं सम्खुकुमारहों जमकरण ॥५॥ तं सूरहासु णामेण असि । जसु ते णिय पह मुअा ससि ॥६॥