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पउमचरित
जसु धारहाँ काल-दिति षसह। जसु काल कियस्तु वि जमु तसह॥७॥ बलत्यु पसानिन - विना पार कर लत्तु जिह ॥८॥
पत्ता पुणु कीलन्तऍण असिषत्ते हउ सरथल । ताव समुच्छले वि सिरु पखिउ स-मउडु स-कुपहलु ॥२॥
[४] जं दिट्छ विवाइट सिर-कमलु। सिरिवच्छे विहुणिउ भुय-जुअलु ॥३॥ 'चिम्मई णिशारणु वहिउ परु। बत्तीस वि लक्षण-लख-धरु' ॥२॥ पुणु जाम णिहालइ बस-वणु। पर-रुपडु दिदछु फन्दन्त-तणु ॥३॥ ते पेक्खें वि चिम्तइ खरंगधर । “घिउ माया स्त्र को वि स ॥४॥
3 एम मणेपिणु महुमहणु। णिविसेण परायड गिय-भवणु ॥५॥ राहवेण चुत्तु 'भो सुहष्ट-ससि । कहिँ लधु खग्गु कहिं गयउ असि॥६॥ सेण वि सं सयलु वि अक्सियउ । सस्थल जिद्द धणे लक्खियड ॥७॥ जिह क्षु खग्गु तं अतुल-बलु । जिह खुविउ कुमारहों सिर-क्रमलु 14॥
पत्ता घुबई राहणा में पुतिय मुहिषएँ साडिय । असि सावण्णु णवि पई जमहौं जीह उपपारिय' ॥१॥
जे पहिय भीसण वत्त सुय । वेवम्ति पम्पिय जणय-सुय ॥१॥ 'लय-मण्डपें विउलें णिविष्टाहुँ । सुहु णाहि वणे वि पइटाहुँ ॥२॥ परिममइ जणदणु नहिं में जहिं । दिवें दिवे कदमरमु तहि ज तहिं ॥३॥ कर-चलण-देह-सिर-एण्डणाहुँ। णिविण्ण माएँ हउँ भण्डहुँ ॥३॥ हताएँ दिग्णी केहाहुँ। कलि-काल-किपम्तहुँ जेहा ॥५॥