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पउमचरित
[१३] जं आयण्णिड पक्खि-मवन्तरु | जाणइ कम्तै पमपिउ मुणिवरु ॥१॥ 'तो बरि अम्हहुँ वय घडाबहु । पक्विह सुहय-पन्थु दरिसाबहु' ॥२॥ सं वलएषहाँ पाय दुषिणु। पलाएर पुि ॥. दिण्ण पहिच्छिय तिहि मिजणेहिँ । पुणु अहिणन्दिय एक-मणेहिं ॥१॥ मुणिवर गय यासही जाहिं। लक्खणु मवणु पराइड ताहि ||
राहव एड का अद्यारिप । जं मन्दिरणिय-रयण हिं भरियज'। ९३ तेण वि कहिउ सञ्चु जं वित्त । 'म आहार-दाण-फलु पसउ' ।।७।। सक्षण पश्चरिउ परिसिउ। मेहँ हि जिह अणवरउ परिसिउ ॥८॥
पत्ता रामही वयगु सुणेवि अण्णन्तें गेहवि मणि-रायण बलवन्त । वड-पारोह-कमेहि पचण्ठे हि रहवा खिश सयंभुव-दण्ड हि ॥२॥
छत्तीसमो संधि
रहु कोडावण मणि-रषण-सहासें हिं परियउ । गयणहाँ उछल वि णे दिणपा सम्वणु पश्यित ॥
[.] सहि तेहएँ सुन्दर सुप्पयाँ। भारण्ण-महागय-जुस-रहें ॥१॥ धुरे खरखणु रहवर दासरहि। सुस्कील पुणु विहरन्ति महि ॥२॥ तं कण्हवण-णइ मुवि गम। वणे कहि मि णिहालिय मत गय ॥३॥ कल्प वि पञ्चाणण गिरि-गुहेहि। मुत्तावलि विक्खिरन्ति पहेंहि ॥॥