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________________ पंचतीसमो संधि २४७ भस आसपत्र वनमें डाल दिया गया जहाँ कि सृण भी बाणके समान था और अग्निके समान पत्ते भी, अत्यन्त कठोर । जहाँपर काँटेवाले तैलोह वृक्ष हैं। तलवारकी तरह पत्तेवाले, प्रचुर और विशाल । दुर्गम, दुदेर्शनीय, दुर्ललित नाना प्रकार के अत्रोंके फलोंसे भरे हुए। वे फल और पत्ते जहाँ भी गिरते हैं, वहाँ लगातार एक दूसरेके शरीर छेद डालते हैं। उस वैसे असिपत्र वनको देखकर वह भागा, और जाकर चैतरिणी नदीमें घुस गया । जहाँ कि अत्यन्त दुर्गधित जल बहता है-रस, वसा, रक्त रससे सच ना,, और अन्य दिल जल है। पीपसे मिश्रित जिसे जबर्दस्ती पिलाया जाता है । इस प्रकार सन्ताप और दुःखसे सन्तप्त जहाँ झण-क्षणमें उत्पन्न होता हुआ और मरता हुआ वह मयवर्धन सातवें नरकमें तबतक स्थिव रहेगा कि जबतक आकाश प्रांगण और सुमेरु पर्वत रहेगा ॥१-९॥ __ [१५] तव नारकियोंने विरुद्ध होकर राजाको ललकारा, "मर-मर, अपने उन दुश्चरितोंकी याद कर, कि जिनका तूने आचरण किया था । तुमने पाँच सौ मुनियोंको मारा । लो अब उन दुःखोंको भोगी।" यह कहकर उन्होंने तलवारसे टुकड़े टुकड़े कर दिये; फिर तीरों और भालोंसे भिन्न-भिन्न कर दिया। फिर तिल-तिल करपत्रोंसे काटा। फिर गीधों, गाल, कुत्तोंको दे दिया। फिर मत्त गजेन्द्रों के नीचे दबाया गया। फिर नागसमूहोंसे घिरवाया गया। फिर खण्डित कर दिया और यन्त्रमें डाल दिया। इस प्रकार पाँच सौ बार उसे पीड़ा पहुँचायी। फिर दुःस्त्रपूर्वक किसी प्रकार अनेक कष्टोंके साथ हजारों योनियों में परिभ्रमण करता हुआ, वह इस नृपकाननमें पक्षी हुआ है, और इस समय तुम्हारे आँगनमें स्थित है। तब वह पक्षी अपने मनमें पश्चात्ताप करता है कि मैंने श्रमण संघको सन्ताप क्यों
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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