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पउमचरिउ
जहि विणु मिसिल परिसर | अष्णु त्रिभगिष्णु णिष्फरिसउ ॥२॥
जहिं तेलोह - रुवल कण्टाला | दुग्राम कुण्णिरिक्ष दुललिया । जहिँ णिवदन्ति वा फल-पत्त
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असि पसल अमराळ विसाठा ॥ ३ ॥ णाणाविह-पहरण-फल- भरिया ॥४॥ तहिँ हिन्दन्ति निरन्तर गत हूँ ॥ ५॥ पुणु वहसरणि गपि पट्टउ ॥ ६ ॥ रख-वस-सीशिय संस-समिद्धउ मण्ड वियाविड पूर्व विमिस्स ॥ ८ ॥
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तं तेहरवणु मुऍषि पणउ । जहि ते सलिल व दुग्गन्ध उण्ड खारु तोरु अद विरस |
घन्ता
इय संताव- दुस्पेसल खणे खणें उपान्तु मरन्त । थि सप्तमऍ रएँ मवदणु मेइनि नाम मेरु गणणु ॥ ९॥
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ताव विरुद्ध एहिँ दकारिउ ।
रबद्द पारस्पएिँ पञ्चारि ॥ १॥
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"मद मरु संमरु दुधरियाई । जाइँ आसिप संचारिया || २ || पञ्चसयहूँ मुणिवरहुँ हवाइँ । लड़ अणुहुअहि साइँ दुहाई ॥३॥ एमपि खग्र्गेहिँ विष्णव । पुणु वाणेंहिँ मलेहिं भिण्णउ ॥ ४ ॥ पुणु ति तिलु करवते हिं कष्पित। पुणु गिद्धहुँ सिव-सागहुँ अपि ॥ ५ ॥ पेलाडि म गइन्देहिं । पुणु वेदावि पण्णय - त्रिदेहिं ॥ ६ ॥ पुणु खण्डिड पुणु जस्तै छुदावित । अधु सहासु चार पीकाविड ॥ ७ ॥ दुक्खु पु कह वि किळेस हिँ । परिभ्रमन्तु मव- जोणि- सहरसें हिं ॥ ८ ॥ एत्थु विशुजाउ यि काणणें । एवहिं अच्छा तुम्ह रणे ॥
घसा
ताव पविख मच्छुचाविउ 'किइ महूँ सवण-सब्धु संताधिउ | एतिय मर्से अम्भुदरगड महु सुधहों वि जिणवरु सरपड' ॥१०॥