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________________ पंचतीसभी संधि २॥ करो कि महीतलपर प्रह-नक्षत्र होते हैं, विश्वास करो कि सूर्य और चन्द्रमा उलटे होते हैं, विश्वास करो कि समुद्र घूमते हैं, विश्वास करो कि कुलपर्वत आकाशमें होते हैं, विश्वास करो कि चौबीस जिनपर नहीं होते, विश्वास करो कि चक्रवर्ती और कुलकर नहीं होते, विश्वास करो कि मठ पुराण नहीं होते, पाँच इन्द्रियाँ नहीं होती, पाँच ज्ञान नहीं होते; सोलह स्वर्ग नष्ट होते हैं और भग्न होते हैं । लेकिन मुनि चोर होते हैं, हे मन्त्री ! इसपर विश्वास मत करो।" जब राजाने कई बार इस तरह कहा तो परिवारने पुनः मन्त्रणा की कि “हम लोग शीघ्र ही एक मुनिरूप दिखाय और उसे महादेवीके पास बैठायें ॥५-१०॥ [९] अवश्य ही राज्येश्वर पुरपरमेश्वर मुनिवरोंको निकलवा देगा।" इस प्रकार विचार कर उसने पुन: किसीको पुकारा और तत्क्षण उसका मुनिरूप बनाया। उसके साथ जनमनको अच्छी लगनेवाली दुर्नयस्वामिनी विकारों के साथ जा लगी। सब इसी बीच पुलफित्त शरीर, भयवर्धन अपने राजाके पास गया ( और बोला ), "राजा : देखो-देखो, जो मैंने कहा था इसका सबूत मिल गया। मूर्ख और अपण्डित तुम आज भी नहीं समझते जब कि भण्डार भी हर लिया गया, और भार्या भी हर ली गयी।" राजा मनमें जानता था तब भी वह मूर्ख कोपरूपी गजेन्द्रपर चढ़ गया। राजपुरुषोंको उसने आज्ञा दी। पाँच सौ ही मुनीन्द्र पकड़ लिये गये ॥१-७॥ [१०] राजाके आदेशसे वे मुनि पकड़ लिये गये जो कि पाँच इन्द्रियोंके प्रसारका निवारण करनेवाले थे। जो कलि, कलुष और कषायोंका विदारण करनेवाले थे, जो घोर संसारसे पार करनेवाले थे, जो चारित्ररूपी नगरके, प्राकार थे, जो कर्मरूपी आठ दुष्ट दानवोंका नाश करनेवाले थे, जो अनासंग और काम१६
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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