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पति विवरिय च दिवायर | पत्तिय हे हवति कुलपव्वन । पतिय उपवीस कि जिनवर। परिय गड तेसडि पुराण हूँ । सोलह सामग्गहूँ उत्पत्तिप ।
पउमचरिउ
पत्तिय परिभ्रमन्ति स्वणापर ||५|| प्रतिय एकहिँ मिलिय दिसा-गय ॥६॥ पत्तिय पत्र चक्रव ण कुलयर ॥७॥ पञ्चेन्दिय पविणा हूँ ॥ ८ ॥ मुणि चोरन्ति मन्ति मं पत्तिय" ॥९॥
घन्ता
जे र पोलिट कहवारे मन्तिर मन्तु पुणु वि परिवारें ।
"लडु रिसिह एकु दरिसाषहुँ पुणु मदवि-पासु नहसार हुँ ||१०||
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अवर्से से पुर-परमेमरु | एम भवि पुणु वि कोकाविड । शेण समाजच जण सण-भाषिणि । तो एस्थत गोलिय-सणु । पण पेक्खु पेक्तु मुणि-कम्महुँ । ढुक्कु पमाणहाँ बोलि जं महूँ ॥ ५॥ मूढा अवुह ण वुजाहि अज वि । हिउ मण्डार जाव हिय मज वि ॥ ५ ॥
मुणिवर घल्लेसह रज्जेसह " ॥ १॥ सक्खों मुणिवर- वेसु धराविउ ॥ २ ॥ लग्ग वियारेंहिँ दुष्णय-स - सामिणि ॥३॥ गड जिय शिवहाँ पासु मयबद्धणु ||४||
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घन्ता
जाणतो वि तो वि मणें मूढड णरवड कोव - गइन्दारुड | दिण्णाणसी णरवर-विन्दहुँ भरियाँ पञ्च वि सय मुणिन्द हुँ ॥७॥
पहु-भसें धरिय मडारा । जे कलिकलुस-काय विचारा ।
जे चारित पुरहों पागारा जे पोस भण-वियारा ।
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जे वेन्दिय पसर- णिवारा ॥ १ ॥
जे संसार - घोर उतारा ॥२॥
जे
कमल-बुद्ध-दणु-दारा ॥ ३ ॥ जे मविमायण-अभुद्धारा ॥ ४ ॥